Andheri Nagari Chopat Raja Story In Hindi – दो साधु एक तीर्थयात्रा पर निकले। इनमें एक गुरु था और एक चेला। वापस लौटते समय उन्हें रास्ते में एक नगर मिला। दिन डूबने में डेढ़-दो घंटे बाकी थे। कुछ थकान भी थी, इसलिए आराम करने के लिए वहीं रुक गए। गुरु ने सामान लाने के लिए चेले को बाजार भेज दिया और खुद खाना बनाने की जुगाड़ में लग गए। गुरु आस-पास से चार ईंटों और सूखी लकड़ियों का इंतजाम कर लाए। अब चेले के आने का इंतजार करने लगे।
चेला जाया और खरीदकर लाई हुई चीज गुरु के सामने रख दी। गुरु देखकर दंग रह गए, “यह क्या लाया है? “चेला प्रसन्नता से बोला, “खाजा लाया हूँ। गुरुजी, नगरी बड़ी मजेदार है। बाजार को देखकर तो में भौंचक्का रह गया। हर चीज टका सेर! कुछ भी ले तो भाजी को फाटो-पीटो, आटे को गूंथो, फिर बनाओ। इन सब झंझट से बच गए गुरु बस, एक टके का है यह एक सेर खाजा।” गुरुजी बेले की नासमझी पर मन-ही-मन दुखी हुए, लेकिन क्या करते। जब सुबह पता चला कि इस नगर का नाम ‘अंधेर नगरी’ है, तो और भी दुखी हुए।
गुरु ने तुरंत अपना झोला-झंगा समेटा और चेले से कहा, “चल, यह नगरी ठहरने योग्य नहीं है। इसके नाम से ही पता चलता है कि यहाँ सब कुछ गड़बड़ है। टका सेर भाजी और टका सेर खाजा! अरे ऐसा भी कहीं होता है? यहां कोई समझदार आदमी नहीं है। लगता है, राजा ही नगर को चौपट करने पर तुला हुआ है गुरु की बात चेले के समझ में नहीं आई। वह बोला, “गुरुजी, यहां तो सुख-ही-सुख है।
कुछ दिन यहीं रुकिए। ऐसा सुख तीर्थयात्रा में कहां रखा है? में तो कुछ दिन यहीं रुककर सुख भोगूंगा।” गुरु ने देखा कि चेला बच्चों की तरह अपनी जिद पर अड़ा है, तो रुक गए। गुरु समझदार थे। वे जानते थे कि चेले को अकेला छोड़ने पर जरूर कुछ अहित हो जाएगा। गुरु अपने लिए रोज सादा भोजन बनाते, जबकि चेला नगरी का खाजा मिष्ठान खा-खाकर मोटा होता चला गया।
इन्हीं दिनों नगर में एक घटना घटी। राजा ने एक खूनी कैदी को फांसी की सजा सुनाई। उस कैदी को फांसी देने के लिए गले में डाला जाने वाला फंदा बड़ा बन गया। राजा चिंतित था, क्योंकि फांसी देने के मुहूर्त तक दूसरा फंदा बन नहीं सकता था और यह भी नहीं हो सकता था कि फांसी देने का मुहूर्त आगे बढ़ा दिया जाए।
राजा अपने यहां की परंपरा को संकट में पड़ते देखकर उलझन में पड़ गया। आखिर में राजा ने तय किया कि फांसी तो इसी मुहूर्त में दी जाएगी। इसको नहीं, तो किसी दूसरे को सही फांसी तो देनी ही है। राजा ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि जाओ, नगर में जो भी व्यक्ति सबसे पहले सामने आए, जिसकी गरदन इस फंदे के अनुसार ठीक बैठे, पकड़ लाओ और फांसी दे दो।
राजा की आज्ञा पाते ही सैनिक निकल पड़े ऐसे व्यक्ति की खोज में ढूंढते ढूंढते संयोग से चला सामने आ गया। वह बाजार में खाजा खरीदने गया था। उसकी गरदन उस फंदे के अनुसार बिल्कुल ठीक थी। सैनिक उसको पकड़ कर ले गए। यह खबर जब गुरु को मालूम पड़ी, तो गुरु भागे-भागे गए। एक ओर चेले पर गुस्सा आ रहा था, तो दूसरी ओर उसकी चिंता भी सता रही थी। चेला जो था। रास्ते भर इसी उधेड़-बुन में लगे रहे गुरु। वहां जाकर देखा, तो चेले को सैनिक पकड़े हुए थे और फांसी देने की तैयारियां चल रही थीं। गुरु ने सैनिकों से कहा, “छोड़ दो चेले को इस समय फांसी पर चढ़ने का अधिकार तो मेरा है।
“क्यों छोड़ दूं इसे एक सैनिक ने कहा। “इस मुहूर्त में फांसी से मरने वाले को सीधा स्वर्ग मिलेगा। शास्त्रों में भी चेले से पहले गुरु का है।” स्वर्ग जाने का अधिकार गुरु ने सैनिकों को खूब घुड़का, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। आखिर में गुरु ने चेले को आंख से इशारा किया। गुरु का इशारा मिलते ही चेला चिल्लाया, “नहीं, गुरुजी। स्वर्ग जाने का मेरा ही अधिकार है। सैनिकों ने मुझे ही पकड़ा है, आपको नहीं।
“नहीं शास्त्र विरुद्ध कार्य नहीं हो सकता। यह महापाप होगा। पहले फांसी पर मैं चलूंगा।” गुरुजी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए किल्लाए। गुरु और वेला, दोनों ही चिल्ला-चिल्लाकर झगड़ने लगे। देखते-ही-देखते भीड़ इकट्ठी हो गई। फांसी पर चढ़ने को लेकर इस प्रकार का झगड़ा जनता के लिए आश्चर्य की बात थी। इससे पहले ऐसा न कभी देखा गया था और न सुना ही गया था।
एक ओर राजा की आज्ञा थी और दूसरी ओर साधु का धर्मशास्त्र सैनिक असमंजस में पड़ गए। एक नया संकट पैदा हो गया। अंत में, यह मसला राजा के पास ले जाया गया गुरु और चेले की बात सुनकर राजा को स्वर्ग का लालच हो आया। राजा ने कड़ककर कहा, “यदि इस मुहूर्त में ऐसा ही होना है, तो सबसे पहले यह अधिकार राजा का है। बाद में पद के हिसाब से राजा के उच्च अधिकारियों का।” गुरु-चेला मिलकर दोनों ही चिल्लाते रहे, लेकिन उनकी बात किसी ने न सुनी। सैनिकों ने उन्हें हटाकर एक तरफ कर दिया।
पहले राजा को फांसी दी गई। इसके बाद राजा के उच्च अधिकारियों को फांसी देने का सिलसिला शुरू हो गया। गुरु आखिर थे तो साधु ही, उनकी आत्मा हिल गई। वे अथ बेकसूरों की और हत्या नहीं देखना चाहते थे, इसलिए गुरु ने कहा, “अब स्वर्ग जाने का मुहूर्त समाप्त हो गया।” गुरु की बात सुनते ही फांसी देने का सिलसिला समाप्त कर दिया गया।
इधर गुरु ने चेले के कान में कहा, “देख लिया अंधेर नगरी और यहां के लोगों को निकल चल जल्दी से ” चेला चुपचाप गुरु के पीछे-पीछे चला गया। उसके बाद जब भी इस नगरी के बारे में जिक्र किया जाता, तो गुरु निम्न पंक्तियां कहने से नहीं चूकते थे अंधेर नगरी चौपट राजा। टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।
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