Dosti Me Darar Story In Hindi- अकबर बादशाह के एक शहज़ादे की शहर के एक प्रतिष्ठित साहूकार के लड़के से घनिष्ठ मित्रता थी। वह सारा दिन अपने मित्र के साथ सैर-सपाटा किया करता था। दोनों कोई काम-धाम नहीं करते थे। इसीलिए अकबर बादशाह तथा साहूकार को यह मित्रता पसंद नहीं थी। दोनों ही चाहते थे कि इनकी मित्रता टूट जाए ताकि दोनों ही किसी काम-धंधे में ध्यान लगाएँ।
इन दोनों की मित्रता कैसे भंग हो, इस विषय पर एक दिन बादशाह विचार कर रहे थे, तभी बीरबल वहाँ पहुँच गए। उन्हें देख अकबर बहुत खुश हुए और पास बैठाकर बोले, “साहूकार के पुत्र तथा शहज़ादे की दोस्ती किसी न किसी तरह से छुड़ानी चाहिए। मेरे विचार से तुम ही इस काम को कर सकते हो।
“महाराज की समस्या की गंभीरता को समझकर बीरबल बोले, “जहाँपनाह! हुक्म जारी कीजिए कि आज शहज़ादा तथा साहूकार – पुत्र दोनों एक साथ दरबार में उपस्थित हों। “अकबर बादशाह ने ऐसा हुक्म जारी कर दिया। दोनों मित्र नियत समय पर दरबार में उपस्थित हुए। कुछ देर तक इधर-उधर मन बहलाव की बातें होती रहीं।
जब बीरबल ने देखा कि अब शहजादे का मन यहाँ नहीं लग रहा है, तो उन्होंने उसके साहूकार मित्र के पास जाकर उसके कान में फुसफुसा कर कुछ कहा। बात साफ नहीं थी, अतः साहूकार का लड़का कुछ नहीं समझ पाया। इसके पश्चात् बीरबल ने शहज़ादे के मित्र को संबोधित करके चेतावनी दी, “ध्यान रहे, यह बात बिल्कुल गुप्त रखी जाए। अपने इष्ट मित्रों से भी तुम इसकी चर्चा मत करना।
“बीरबल की इस चेतावनी को सभी उपस्थित लोगों ने सुना। इसके बाद दरबार दूसरे दिन के लिए उठ गया। दरबार से बाहर निकलने के पश्चात शहज़ादे ने मित्र से पूछा, “बीरबल ने तुम्हारे कान में क्या कहा था? “साहूकार पुत्र शहज़ादे को कुछ नहीं बता सका। आखिर, कोई बात बीरबल कहते या वह समझता तो बताता भी। इससे शहज़ादे को कुछ शंका उत्पन्न हुई। वह बोला, “मित्र, आज तुमने यह नया तरीका खूब अपनाया है।
“नहीं दोस्त, बिल्कुल नहीं। बीरबल ने मुझसे कुछ कहा ही नहीं, केवल कान के पास मुँह ले जाकर कुछ अस्पष्ट-सा फुसफुसाया और खुलेआम यह कहा कि जो बात मैंने तुमसे कही है, इस बात को गुप्त रखना।” साहूकार मित्र ने शहज़ादे को समझाते हुए कहा।
लेकिन शहज़ादे को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा, उसका मित्र सब कुछ जानते हुए भी बता नहीं रहा है। शहजादे के दिल में संशय पैदा हो गया। धीरे-धीरे दोनों के दिलों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का गहरा परदा खिंच गया। दोनों की घनिष्ठ मित्रता आखिर भंग हो गई।
फिर, हमेशा के लिए दोनों मित्रों का मन एक-दूसरे से हट गया। वे अपने-अपने काम-काज देखने लगे। साहूकार को भी बड़ी खुशी हुई। अकबर बादशाह बीरबल की चतुराई से अत्यधिक प्रसन्न हुए और सदा की तरह बीरबल को इस कार्य के लिए भी पुरस्कृत किया।
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