Pagla Dasu Story In Hindi- हमारे स्कूल के छात्रों में ऐसा कोई भी नहीं था, जो पगला दासू को नहीं जानता हो। स्कूल में कोई किसी और को भले ही न पहचाने पर पगला दासू को जरूर पहचान लेता था। उस बार एक नया दरबान आया था। एकदम कोरा, देहाती लेकिन पहली बार जब उसने पगला दासू का नाम सुना, सभी उसने सही अन्दाज लगा लिया कि यही पगला दासू है।
क्योंकि उसके चेहरे, बातचीत, -दाल से पता चल जाता कि उसके दिमाग में कुछ गड़बड़ है उसकी आँखों बिलकुल गोल दी, उसके कान अस्वाभाविक रूप से बड़े थे और उसके सिर के बाल घुंघराले थे। उसे देखकर लगता था क्षीण देह, क़द नाटा जिस पर सिर अति भारी कछार की कई मछली-सा मानव शरीरधारी।
जब वह तेज चलता था अथवा तेजी से बात करता था, तब उसके अंग-संचालन को देखकर न जाने क्यों झींगा मछली याद आने लगती। ऐसा नहीं कि वह बेवकूफ़ था। गणित लगाते समय, विशेषकर काफ़ी बड़े-बड़े गुणा-भाग का हल करते वक्त उसका दिमाग़ आश्चर्यजनक रूप से तेज चलता था। इसके अलावा कभी-कभी वह हम लोगों को मूर्ख बनाने के लिए ऐसी चाल चलता कि हमलोग उसकी अक्ल पर हैरान हो जाते थे।
दासू यानी दासरथी जब पहले-पहल हमारे स्कूल में भर्ती हुआ, तब तक जगबन्धु को अपनी कक्षा का सबसे अच्छा विद्यार्थी समझा जाता था। पढ़ाई में अच्छा होते हुए भी उसके जैसा ईर्ष्यालु ‘मोंगी विल्ली’ हम लोगों ने नहीं देखा था। दासू एक दिन जगबन्धु के पास एक अंग्रेजी शब्द का अर्थ समझने गया था।
जगबन्धु ने उसे नाहक जली-कटी सुनाते हुए कहा, “मुझे क्या कोई और काम नहीं है? आज • किसी को अंग्रेजी समझाऊ, कल किसी का सवाल हल कर दूँ, परसों काई और फ़र्माइश लेकर चला आएगा…बस यही करता रहूँ। दासू ने भी बिगड़कर कहा, “तुम तो बड़े बड़े पाजी, छोटे दिलवाले हो।” जगबन्धु ने पंडित जी से शिकायत की, “यह नया लड़का मुझे गाली दे रहा है।
पंडित जी ने दासू को ऐसा डाँटा कि बेचारा चुप हो गया। हमें अंग्रेज़ी बिट्टू बाबू पढ़ाते थे। जगबन्धु उनका प्रिय छात्र था। पढ़ाते वक़्त जब उन्हें पुस्तक की जरूरत पड़ती थी, वे उसे जगबन्धु से ले लेते थे। एक दिन उन्होंने पढ़ाते समय व्याकरण की किताब मांगी, जगबन्धु ने झटपट अपनी हरे जिल्दवाली अंग्रेजी व्याकरण की किताब उन्हें दे दी।
मास्टर साहब ने किताब खोलते ही अचानक गम्भीर होकर पूछा, “यह किताब किसकी है? जगबन्धु ने सीना तानकर कहा, “मेरी है। मास्टर साहब बोले, “हूँ, शायद नया संस्करण है? पूरी किताब ही एकदम बदल गई है। यह कहकर वे पढ़ने लगे, “यशवन्त दरोगा … सनसनीखेज जासूसी नाटक।” जगबन्धु समझ न पाने के कारण बेवकूफों की तरह ताकने लगा।
मास्टर साहब बहुत नाराज होकर बोले, “अब यही सब फ़ालतू चीजें तुम पढ़ रहे हो? जगबन्धु ने घबराकर कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन मास्टर साहब ने डाँटते हुए कहा, “अब रहने दो, सफ़ाई देने की जरूरत नहीं। बहुत हो गया।” शर्म और अपमान से जगबन्धु के कान लाल हो गए। हम लोग बहुत खुश हुए। बाद में पता चला कि यह दासू भैया की शरारत थी। उसने मजा लेने के लिए उपक्रमणिका की जगह ठीक ऐसी ही जिल्दवाली किताब रख दी थी।
दासू को लेकर हम लोग हमेशा ही हँसी मजाक करते थे और उसके सामने ही उसकी वृद्धि और चेहरे के बारे में कटु आलोचना करते थे। मगर उसे कभी भी बुरा मानते नहीं देखा। कभी-कभी तो वह खुद ही हमारी टीका-टिप्पणियों पर और भी मज़े लेकर अपने बारे में तरह-तरह के किस्से सुनाता।
उसने एक दिन कहा, “भाई मेरे मुहल्ले में जब भी किसी को अमावट बनानी होती है, उसे मेरी ज़रूरत पड़ती है। पता है क्यों?” हम लोगों ने पूछा, “शायद तुझे अमावट खूब पसन्द होगी ?” उसने कहा, “नहीं।” वे जब अमावट सुखाने लगते हैं, तब मैं यहाँ छत पर एकाधिक बार अपना चेहरा दिखा आता हूँ। इतने से ही आसपास के सारे कीए घबड़ाकर भाग जाते हैं। फिर किसी को अमावट की रखवाली नहीं करनी पड़ती।
वह एक दिन अचानक पतलून पहनकर स्कूल में आ गया। ढीले-ढाले पाजामे जैसी पतलून और ग़िलाफ़ की तरह का कोट पहनकर वह बड़ा अजीब-सा लग रहा था। इसे वह खुद भी महसूस कर रहा था। इसे वह बड़े मज़े की बात भी समझ रहा था। हम लोगों ने उससे पूछा, “आज पतलून पहनकर क्यों आया है?
दासू हँसता हुआ बोला, “अच्छी तरह अंग्रेज़ी सीख सकूँ इसलिए। एक बार वह अपने सिर के बाल मुड़वाकर माथे पर पट्टी बाँधकर कक्षा में आने लगा। इस बात को लेकर मज़ाक़ करते ही वह खुश हो गया। दासू को गाना बिलकुल ही नहीं आता था। उसे सुर-ताल का ज्ञान नहीं था, इसे भी वह बेहतर जानता था।
इसके बावजूद जब उस बार इन्स्पेक्टर साहब जाँच के लिए स्कूल में आए, तब वह हमें खुश करने के लिए ज़ोर-ज़ोर से गाने लगा था। 56 / सुकुमार राय : चुनिन्दा कहानियाँ अगर हममें से कोई उस दिन वैसा करता तो हमें कड़ा दंड मिलता, मगर दासू को पगला समझने के कारण उसे कोई सजा नहीं मिली।
एक बार छुट्टी के बाद दासू एक विचित्र बक्सा बग़ल में दबाकर कक्षा में हाज़िर हुआ। मास्टर साहब ने पूछा, “क्यों दासू, इस बक्से में क्या लाए हो? दासू बोला, “जी, मेरा सामान है।” वह सामान क्या हो सकता है, इसे लेकर हममें आपस में बहस छिड़ गई। दासू के पास किताब कापी, छुरी-पेंसिल सभी तो थीं, तब उसमें और क्या हो सकता था?
दासू से पूछने पर उसने सीधे-सीधे कोई जवाब न देकर उस बक्सा को कसकर पकड़ लिया। फिर बोला, “खबरदार मेरा बक्सा मत खंगालना।” इसके बाद चावी से बक्सा को थोड़ा खोलकर उसके भीतर रखी चीज देखकर इतमीनान से सिर हिलाकर बुदबुदाते हुए वह हिसाद लगाने लगा। मैंने कौतूहलवश झाँकने की कोशिश की थी कि तभी उस पगले ने हड़बड़ाकर चावी उल्टी घुमाकर बक्से को बन्द कर दिया।
फिर तो हमारे बीच आपस में ही बहस शुरू हो गई। किसी ने कहा, “वह उसका टिफिन का बक्सा है, उसमें खाना रखा होगा। लेकिन उसे टिफिन के वक्त कभी खोलकर उसमें से खाना निकालते किसी ने नहीं देखा। किसी ने कहा, “शायद यह उसका मनीबैग होगा, उसमें उसके रुपये-पैसे रखे होंगे, इसीलिए वह उसे हमेशा अपने साथ लिए रहता है।
तभी किसी ने पूछा, “रुपये-पैसों के लिए इतने बड़े बक्से की क्या जरूरत? यह क्या स्कूल में महाजनी कारोवार करेगा?” एक दिन टिफ़िन में दासू अचानक हड़बड़ाकर बक्से की चाबी मुझे देकर जाते हुए बोला, “इसे अभी अपने पास रखो। देखो कहीं खो न जाए। मुझे आने में अगर देर हो जाए तो तुम लोग कक्षा में जाने से पहले इसे दरबान को दे देना।” यह कहकर दरबान के ज़िम्मे उस बक्से को रखकर वह चला गया।
तब हम लोगों का उत्साह देखने लायक था। इतने दिनों बाद जाकर अब मौका मिला था। अब दरबान के वहाँ से हटने का इन्तज़ार था। थोड़ी देर बाद दरवान रोटी पकानेवाला अपना लोहे का चूल्हा सुलगाकर, थोड़े बर्तन लेकर नल के पास चला गया। हम लोग इसी मौके की तलाश में थे।
दरबान के ओझल होते ही हम पाँच-छह लड़के उसके कमरे के पास उस बक्से के चारों ओर सिमट गए। मैंने चाबी से बक्से को खोलकर देखा। उसमें काग़ज़ का भारी गट्ठर कपड़े के टुकड़े से अच्छी तरह लपेटा हुआ था। फटाफट लपेटे हुए कपड़े को खोलकर देखा उसमें एक काग़ज़ का बक्सा था, उसमें एक और छोटी पोटली थी। उसे खोलने पर एक कार्ड मिला, जिस पर लिखा था-ले अंगूठा’ काई के उल्टी तरफ़ लिखा था, “ज़रूरत से ज़्यादा कौतूहल ठीक नहीं।
इसे देखकर हम एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। आखिर में किसी ने कहा, “वह भले ही जो 1 हो, उसने हमें खूब उल्लू बनाया एक और ने कहा, “जिस तरह यह बंधा हुआ था, ठीक उसी तरह रख दो, जिससे पता न चले कि हमने इसे खोला था। इससे वह खुद ही धोखा खा जाएगा। मैंने कहा, “ठीक है। उसके लौटने के बाद तुम सभी भले लड़कों की तरह इस बक्से को दिखाने के लिए कहना और उसमें क्या है इस बारे में पूछना। इसके बाद हम सभी जल्दी-जल्दी काराजों को बाँधकर पहले की तरह गहर में लपेटकर, उसे बक्सा में रखकर ताला लगाने लगे।
बक्से में ताला लगाने जा ही रहा था कि तभी खी खी करके हँसने की आवाज़ आई। हमने देखा कि चारदीवारी पर पगला दासू बैठकर हँसते-हँसते लोटपोट हो रहा था। बदमाश अभी तक चुपचाप बैठा तमाशा देख रहा था। तब मैं समझ गया कि मुझे चाबी देना, दरवान के पास बक्सा रखना, टिफ़िन के वक़्त बाहर जाने का नाटक करना, यह सब उसकी शैतानी थी। हमें नाहक मूर्ख बनाने के लिए वह यूँ ही कई दिनों से इस बक्से को ढोता फिर रहा था। हमलोग भला यूँ ही उसे ‘पगला दासू’ कहते हैं।
ऐसी ही अन्य प्रेरणादायक हिंदी कहानी के लिए क्लिक करें