Andhe Ka Hathi Story In Hindi- एक गांव में चार अंधे थे। यह भी बात ध्यान देने वाली थी कि चारों के चारों उसी गांव में पैदा ये जब ये एक साथ बैठसे, तो अपने दुख-सुख की बातें करते थे लोगों की सुनी-सुनाई बातों पर चर्चा करते थे। उन्हें ऐसी तमाम चीजों और प्राणियों के बारे में जानने की इच्छा थी, जिनके बारे में गांव के लोगों से सुन रखा था।
हुए एक दिन उस गांव में एक बारात आई। उस बारात में एक हाथी आया। हाथी के आने की खबर अंघों को भी मिली। इससे पहले गांव में हाथी नहीं आया था। अब तो अंधों के मन में हाथी के बारे में और अधिक जानने की इच्छा जाग उठी। गाँव के लोग हाथी देखने गए, तो अंधे भी वहां पहुंच गए।
भीड़ में एक साथ खड़े-खड़े शोरगुल सुनते रहे। चारों ने आपस में कुछ कानाफूसी की और भीड़ को हटाते हुए हाथी के पास पहुंच गए। जब हाथी के पास आ गए, तो एक अंधा बोला, “महावत भैया, हम लोग हाथी को टटोलकर देखना चाहते हैं। देख लें?” महावत पहले तो असमंजस में पड़ गया। फिर सोचने लगा, ये बेचारे आंखों से तो देख नहीं सकते।
इसी तरह की इनकी हाथी देखने की इच्छा पूरी हो जाएगी। महावत बोला, “देख लो सूरदास लोगों। “महावत भैया, हाथी को जरा संभाले रखना।” इतना कहकर चारों अंधे हाथी को टटोल-टटोलकर देखने लगे। पहले अंधे के हाथों में हाथी का पांव आया टटोलकर बोला, “अरे! हाथी तो बिल्कुल खंभा जैसा है।
“दूसरे अंधे के हाथ कान पर पहुंचे। वह बोला, “अरे नहीं, हाथी तो सूप की तरह है।” तीसरे के हाथ पेट पर लगे। वह अच्छी तरह टटोलकर बोला, “तुम दोनों झूठ बोल रहे हो। हाथी मशक जैसा है। “चौथे अंधे के हाथों में सूंड आई। तीन अंधे अलग-अलग तरह का हाथी बता चुके थे। इसलिए उसने बड़े इत्मीनान से सूंड को ऊपर-नीचे टटोला, फिर कड़क कर बोला, “तुम सब बेकार की हांक रहे हो।
हाथी तो रस्सा जैसा है।” अब तो चारों अंधे अपनी-अपनी बात पर अड़ गए। सब अपनी-अपनी बात पर जोर दे रहे थे। दूसरों की बात कोई भी सुनने को तैयार नहीं था। उनकी आपस में तकरार हुई और नौबत झगड़ने तक आते-आते रह गई।
सब लोग अंधों को बातों पर हंस रहे थे। कुछ लोगों ने अंधों को समझाया कि तुम सबने हाथी का एक-एक अंग टटोला है, पूरा हाथी नहीं, लेकिन अंधों ने सबकी बातों को एक तरफ रख दिया। भीड़ में से किसी ने व्यंग्य करते हुए कहा, “यह ‘अंघों का हावी है भाई।” सब लोग खिल-खिलाकर हंस पड़े।
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