Beiman Kaji Story In Hindi- एक काजी था। जो अपने इलाके में बेहद ईमानदार समझा जाता था। उसके पड़ोस में एक गरीब निःसंतान विधवा रहती थी। उसका नाम फ़ौजिया था। एक बार उसका मन किया कि हज कर आऊँ। यही सोचकर उसने घर का सारा कीमती सामान बेच दिया और नगदी में से कुछ अपने खर्चे के लिए रखकर बाकी बची हजार मोहरें उसने एक थैली में रखकर उस पर लाख की सील लगा दी और काजी के पास जाकर कहा, “काजी साहब, आप बड़े ही ईमानदार आदमी हैं, यही सोचकर मैं आपके पास आई हूँ।
दरअसल, मैं हज पर जाना चाहती हूँ, अतः मेरी ये थैली रख लें, इसमें हजार मोहरें हैं। मैं हज से वापस आकर अपनी अमानत ले लूँगी। “काजी ने थैली रख ली। फौजिया चली गई। करीब दो साल बाद वह वापस आई और काजी से अपनी थैली ले ली।
घर आकर उसने थैली खोलकर देखी तो घबरा गई। थैली में मोहरें की जगह लोहे की टिकलियाँ भरी थी। वह फौरन काजी के पास गई और उसे सारी बात बताई। मगर काजी ने इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर की और बोला, “देखो बीबी! तुम्हारी थैली में क्या था, क्या नहीं था, मुझे नहीं मालूम। मैंने तुम्हारी अमानत जस की तस रख दी थी और तुम्हारे वापस आने पर वैसे ही उठाकर तुम्हें दे दी।
अब मुझे क्या पता उसमें क्या था और क्या नहीं था? “काजी की बात सुनकर फौजिया बीबी बहुत घबराई और गिड़गिड़ाने वाले अंदाज मे बोली, “काजी साहब! मैंने अपने हाथों से थैली में मोहरें रखी थीं। देखिए, मैं बहुत गरीब औरत हूँ। वे हजार मोहरें मेरी कुल जमा पूँजी थी। अपना बुढ़ापा उन्हीं के सहारे गुजारना है मैंने। सारी नहीं तो आधी तो कम से कम दे ही दें। मैंने तो आपको ईमानदार समझ कर अपनी धरोहर आपके पास रखी थी, मगर आप मुझ गरीब के साथ अन्याय कर रहे हैं।
“ऐ बुढ़िया! फालतू बकवास मत कर और सीधी तरह यहाँ से चलती बने, वरना धक्के मारकर बाहर निकाल दूँगा। ”बुढ़िया रोने लगी। उसके जीवन की सारी पूँजी वही हजार मोहरें थी। उसने सोचा, यदि मोहरें न मिलीं तो उसका बुढ़ापा कटना मुश्किल हो जाएगा। अन्त में वह बीरबल के पास पहुँची और सारी बात बताई।
बीरबल ने उसे आश्वासन देकर घर भेज दिया और थैली रख ली। दूसरे दिन बीरबल ने नगर के सभी रफूगरों को बुलाकर वह थैली उन्हें दिखाई। एक रफूगर बोला, “यह थैली तो साल भर पहले मैंने ही रफू की थी।” “कौन लाया था वह थैली तुम्हारे पास?” बीरबल ने पूछा।
“काजी साहब।” दुकानदार ने बताया। – बीरबल ने उसी समय दो सिपाही काजी को बुलाने के लिए भेजे। काजी आया और वहाँ मौजूद रफूगर को देखकर सारा माजरा समझ गया। अगले ही पल उसने जेब से मोहरों की थैली निकालकर बीरबल के कदमों में रख दी और क्षमा माँगने लगा।
“तुम क्षमा के काबिल नहीं हो काजी। तुम्हें तुम्हारे पद से तुरन्त हटाया जाता है। जो खुद बेईमान हो, वह दूसरों का इंसाफ क्या करेगा। “अपना धन वापस पाकर बुढ़िया बेहद खुश हुई और बीरबल को दुआएँ देने लगी। दरअसल, काजी ने नीचे से थैली काटकर मोहरें निकाल ली थीं और उसमें लोहे की टिकली भरकर नीचे से रफू करवा दिया था। हालांकि रफू बड़ी बारीकी से किया गया था, मगर बीरबल की पैनी नजरों से वह बच नहीं सका था।
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