Bhakto Ke Krushna Story In Hindi- एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, “तुम्हारे धर्म ग्रन्थों में यह लिखा है कि हाथी की गुहार सुनकर श्री कृष्णजी पैदल दौड़े थे। न तो उन्होंने किसी सेवक को ही साथ लिया, न सवारी पर ही गए। इसकी वजह समझ में नहीं आती। क्या उनके यहाँ सेवक नहीं थे?
“बीरबल बोले, “इसका उत्तर आपको समय आने पर ही दिया जा सकेगा जहाँपनाह । “कुछ दिन बीतने पर एक दिन बीरबल ने एक नौकर को, जो शहज़ादे को इधर-उधर टहलाता था, एक मोम की बनी हुई मूर्ति दी, जो कि हू-ब-हू बादशाह के पोते की तरह थी।
मूर्ति यथोचित गहने-कपड़ों से सुसज्जित होने के कारण दूर से देखने में बिल्कुल शहज़ादा मालूम होती थी। बीरबल ने नौकर को अच्छी तरह समझा दिया कि उसे क्या करना है। “जिस तरह तुम नित्य-प्रति बादशाह के पोते को लेकर ‘उनके सम्मुख जाते हो, ठीक उसी तरह आज मूर्ति को लेकर जाना और बाग में जलाशय के पास फिसल जाने का बहाना कर गिर पड़ना। तुम सावधानी से जमीन पर गिरना, लेकिन मूर्ति पानी में अवश्य गिरनी चाहिए।
यदि तुम्हें इस कार्य में सफलता मिली तो तुम्हें इनाम दिया जाएगा। “उस दिन बादशाह बाग में बैठे थे। वहीं एक जलाशय था। नौकर शाहजादे को खिला रहा था कि अचानक उसका पाँव फिसला और उसके हाथ से शहज़ादा छिटककर पानी में जा गिरा। बादशाह यह देखकर बुरी तरह घबरा गए और उठकर जलाशय की तरफ लपके।
कुछ देर बाद मोम की मूर्ति को लिए पानी से बाहर निकले। बीरबल भी उस वक्त वहाँ उपस्थित थे, बोले, “जहाँपनाह ! आपके पास सेवकों और कनीज़ों की फौज है, फिर आप स्वयं और वह भी नंगे पाँव अपने पोते के लिए क्यों दौड़ पड़े? आखिर सेवक सेविकाएँ किस काम आएँगी?
“बादशाह बीरबल का चेहरा देखने लगे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि बीरबल कहना क्या चाहते हैं। बीरबल ने कुछ देर रुककर फिर कहा, “अब भी आप नहीं समझे तो सुनिए, जैसे आपको अपना पोता प्यारा है। उसी तरह श्री कृष्णजी को अपने भक्त प्यारे हैं। इसलिए उनकी पुकार पर ही वे दौड़े चले गए थे। ‘यह सुनकर बादशाह को अपनी भूल का अहसास हुआ।
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