HomeHindi Storiesबुद्धिमान शिष्य | Budhhiman Shishya Story In Hindi

बुद्धिमान शिष्य | Budhhiman Shishya Story In Hindi

Budhhiman Shishya Story In Hindi- एक सन्त थे। उनके अनेक शिष्य थे। सन्त ने अपने पिता के श्राद्ध पर विराट यज्ञ का आयोजन किया। पैसा यज्ञ सन्त के आश्रम में पहले नहीं हुआ था। इसीलिए उन्होंने शिष्यों को बुलाकर कहा, “मैं एक यज्ञ का आयोजन कर रहा हूँ। वैसा यज्ञ शायद तुम लोगों को फिर कभी कहीं देखने को नहीं मिले, इसलिए यज्ञ का सारा काम-धाम, विधि-विधान खूब ध्यान से देखना। अपनी आँखों से अच्छी तरह देखे बिना सिर्फ पोथियों के सहारे इस यज्ञ को करना सम्भव नहीं है।

Budhhiman Shishya Story In Hindi

सन्त के आश्रम में बिल्लियों का बड़ा उत्पात रहता था। यज्ञ की तैयारियों के बीच बिल्लियों ने अपनी हरकतों से नाक में दम कर दिया। कभी वे जूठा कर देती थीं, कभी कोई बर्तन उलट देती थीं। उन्हें संभालना मुश्किल हो गया। तब सन्त महाराज ने क्रोधित होकर कहा, “इन बिल्लियों को पकड़कर इस कोने में बाँध दो।” यह सुनते ही सभी नौ बिल्लियों को सभा की एक तरफ़ खूंटियों से बाँध दिया गया।

इसके बाद सही मुहूर्त निकालकर यज्ञ प्रारम्भ हुआ। सभी शिष्य यज्ञ सभा की साज-सज्जा, आयोजन, यज्ञ के विधि-विधान मन्त्रोच्चारण के नियम मन लगाकर देखने और सुनने लगे। बिना किसी बाधा के बहुत सुन्दर ढंग से सन्त महाराज का यज्ञ सम्पन्न हो गया। कुछ समय बाद उन शिष्यों में से एक के पिता का देहान्त हो गया।

उस शिष्य के मन में विचार आया कि वह भी अपने पिता के श्राद्ध में ठीक ऐसे ही यज्ञ का आयोजन करे। उसने अपने गुरु से निवेदन किया। वे बोले, “ठीक है, तुम सारा आयोजन करो, मैं यज्ञ का पुरोहित बनने आ जाऊँगा।” शिष्य बेहद सन्तुष्ट होकर यज्ञ की तैयारियों में जुट गये।

फिर यज्ञ का दिन भी आ गया। सन्त महाराज अपने शिष्यों के साथ श्राद्ध सभा में उपस्थित हो गये। लेकिन उस शिष्य को उस वक्त भी यज्ञ स्थल में बैठने की फुर्सत नहीं थी। यह बड़ी व्यस्तता से इधर-उधर घूम रहा था। इधर यज्ञ का समय बिलकुल सिर पर आ गया। सन्त महाराज चिन्तित होने लगे।

उन्होंने उस शिष्य को बुलाकर पूछा, “अब देर किस बात की है? सारी चीजें तैयार हैं, यज्ञ का समय भी हो चला है, अब तुम आकर इस सभा में बैठो।” शिष्य ने कहा, “एक आयोजन अभी रह गया है, उसी के कारण बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूँ। सन्त ने पूछा, “कहाँ, किसी चीज की कमी तो मैं देख नहीं रहा हूँ।” शिष्य बोला, “जी, अभी चार विल्लियों का जुगाड़ नहीं हो पाया है।

“सन्त ने कहा, “में समझा नहीं।” शिष्य ने घबराई हुई आवाज़ में कहा, “मैंने आपके यज्ञ में ईशान कोण में नौ बिल्लियाँ बँधी देखी थीं। हमारे इस गाँव में काफी ढूँढने पर भी पाँच से ज़्यादा बिल्लियाँ नहीं मिलीं। इसलिए बाकी चार बिल्लियों की तलाश में पास के गाँव में लोग गये हैं। वे अभी आते ही होंगे।

शिष्य की इस बात पर सन्त महाराज बड़े चकित हुए। उन्होंने कहा, “हे बुद्धिमान शिष्य, कौन-सी वस्तु यज्ञ के लिए जरूरी है और कौन-सी नहीं, इसे भी विचार करना नहीं सीखा? आश्रम में बिल्लियों के उत्पात के कारण मैंने उन्हें बाँध रखा था। तुम्हारे यहाँ तो कोई उत्पात नहीं है तो फिर जानबूझकर आफ़त क्यों मोल ले रहे हो? अब झटपट यहाँ बैठ जाओ। यहाँ बिल्लियों की कोई ज़रूरत नहीं है। अब यज्ञ-कार्य बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो जाए।” शिष्य अपनी मूर्खता पर लज्जित होकर सिर झुकाकर सभा में बैठ गया।

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Rahul Patil
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