Man Changa To Kathoti Mein Ganga – दास जूते गांठकर अपनी जीविका कमाते थे। सड़क पर जगह बना ली थी, जहां पर बैठकर रोजाना जूते ‘गांठा करते थे। काशी जाने वाले लोग इसी सड़क से होकर जाया करते थे। साधु संत आदि जो भी लोग गंगास्नान के लिए जाते थे, इधर से होकर ही निकलते थे। रैदास को उनका दर्शन लाभ होता था और उनके जूते गांठकर सेवा करने का अवसर मिलता था।
एक दिन की बात है। उस दिन कोई पर्व था। उनके एक साथी पडित गंगास्नान को जा रहे थे। उन्होंने सोचा, चलो रैदास से मिलते चलते हैं और जूता भी गंठवा लेंगे। रैदास के पास पहुंचे, तो जूता गठवाने के लिए उतार दिया और रैदास से बोले, “गंगास्नान के लिए नहीं चलोगे?”
रैदास काम करते जा रहे थे और पंडित से बातें करते जा रहे थे, “पंडित जी हम गरीबों को बच्चों के पेट पालने से फुरसत नहीं। गंगास्नान कहां से करें? हम लोग तो रोजी-रोटी में ही फंसे रहते हैं महाराज।” तब तक रैदास ने जूते की सिलाई करके पंडित के आगे रख दिया। पंडितजी जेब से निकालकर पैसे देने लगे, तो रैदास बोला, “आप से मजूरी के पैसे नहीं लूंगा।
आप मेरा एक छोटा-सा काम कर देना पंडित ने पूछा, “क्या काम है?” रैदास ने पांच सुपारी देते हुए कहा, “ये सुपारी मेरी ओर से गंगा मैया को भेंट कर देना, लेकिन गंगा मैया जब हाथ बढ़ाकर में, तभी देना पंडित ने रेदास की सुपारियां लीं और चल दिए, लेकिन पंडित रैदास की बात पर रास्ते भर हंसता रहा, तरह-तरह की बातें सोचता रहा। गंगा घाट पर जाकर पंडित ने स्नान-ध्यान किया।
जैसे ही वे वापस चले, तो रैदास को सुपारियों की याद आ गई। सुपारियों गंगा में फेंकने ही वाले थे कि उसी समय रात की गंगा द्वारा हाथ बढ़ाकर लेने की बात याद आ गई। रैदास का तेवर पंडित को अब भी याद था। पंडित को उसकी बात पर दिल्कुल विश्वास नहीं था, फिर भी रेदास की असलियत जानने के लिए रुक गया। पंडित ने हाथ में सुपारियां तो और गंगा मैया से बोला, “लो, रैदास ने आपके लिए ये सुपारियां भेजी हैं पंडित इतना कहकर चुप हो गए और हाथ निकलने का इंतजार करने लगे।
उसी समय जल में से एक कोमल हाथ निकला और सुपारियां लेकर जल में चला गया। उसी क्षण दूसरा हाथ निकला। उस में रत्नों से जड़ा हुआ सोने का सुंदर कंगन था। साथ ही उसे आवाज सुनाई दी कि यह कंगन प्रसाद के रूप में रैदास को दे देना। रैदास से कहना कि गंगा मैया ने तुम्हारी भेंट स्वीकार कर ली है।
इस घटना से पंडित आश्चर्यचकित रह गया। फिर भी पंडित मन-ही-मन रैदास से ईर्ष्या करने लगा। जब पंडित उसी रास्ते से निकला, तो रैदास की नजर बचाते हुए सीधा बर निकल गया। सोने के कंगन ने पंडित के मन में लोभ पैदा कर दिया था। घर पहुंचते ही पंडित ने आवाज लगाई, “सुनती हो, देखो में क्या लाया हूं? कंगन को देखकर पंडिताइन की खुशी का ठिकाना न रहा। पंडित कंगन से संबंधित पूरी घटना सुनाते रहे और पंडिताइन सोचती रही कि अब घर की दरिद्रता दूर हो जाएगी। यह कंगन रत्नों से जड़ा हुआ सोने का है। इसकी कीमत का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
पंडिताइन ने पंडित को सुझाव देते हुए कहा, “इसे बेचने में बड़ी दिक्कत आएगी सुनार सोचेगा। कि यह रत्नों से जड़ा हुआ सोने का कंगन पंडित के पास कहां से आया? इससे अच्छा है आप इसे काशी नरेश को भेंट कर दो। काशी नरेश इतना इनाम देगा कि हमें भीख मांगने से छुटकारा मिल जाएगा। फिर चैन से रहेंगे।
“दूसरे दिन पंडित काशी नरेश के दरबार में पहुंचा। पंडित ने नरेश को जब यह कंगन भेंट किया, तो बहुत प्रसन्न हुए। काशी नरेश ने पंडित को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपए दिए। पंडित रुपए लेकर अपने घर चला गया। प्रसन्न होकर रानी ने कंगन को पहन लिया। जिसने भी उस कंगन को देखा, सभी ने बहुत सुंदर बताया। सुंदर बताने वालों ने यह भी कहा, “आपका दूसरा हाथ सूना-सूना लगता है जब महारानी ने काशी नरेश से अपने एक हाथ के सूनेपन की बात कही, तो उन्होंने तुरंत पाहिले को बुलवाया।
उससे उस कंगन के जोड़े का दूसरा कंगन लाने के लिए कहा गया। काशी नरेश ने यह भी खबर मिजबाई कि यदि उसने कंगन लाकर नहीं दिया, तो घर जब्त कराकर देश निकाला दे दिया जाएगा। पंडित दबराता हुआ राजा के पास पहुंचा। उसने कंगन प्राप्त करने की पूरी कहानी सुना दी। काशी नरेश ने कहा, “रैदास से जाकर कहो कि गंगाजी से इसके जोड़ का दूसरा कंगन लेकर आए पंडित रोता हुआ रैदास के पास पहुंचा। उसने एक लाख रुपए सामने रखकर पूरी घटना सुनाई और बोता, “रैदासजी मुझे माफ कर दो मेरी जान बचा लो।
गंगाजी से उसके जोड़ का दूसरा कंगन लाकर दे दो। एक लाख रुपए से ले तो एक लाख रुपए उस कंगन के भी मिलेंगे।” रैदास ने विनम्र भाव से कहा, “महाराज, मेरी जीविका तो जूते गांठने में निकल आती है। हमारी सब जरूरतें इसी काम से पूरी हो जाती हैं। इन्हें तो आप ही रखिए, और गंगा जाने को मेरे पास समय नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि आपका काम हो जाए।
“पंडित गिड़गिड़ाते हुए बोला, “आप जैसा चाहें, वैसा करें। मुझे राजा के कोप से बचा लीजिए। मेरा घर-बार छीनकर देश निकाला दे देगा ।” रैदास पंडित की स्थिति को समझ गए। रैदास ने सामने रखी चाम को भिगोनेवाली कठौती को अंगोला फैलाकर ढक दिया और बोले, “जो मन चंगा तो कठौती में गंगा।” अंगोछा हटाते ही उसमें पहले की ही तरह का रनों से जड़ा हुआ सोने का कंगन दिखाई दिया। रैदास ने कंगन निकालकर पंडित को दे दिया।
पंडित तेज कदमों से चलते हुए सोचता जा रहा था कि किस प्रकार एक जूते गांटने वाले बमार ने दो लाख रुपए ठुकरा दिए थे। मोर माया से रहित दयावान रेदास उसके अंदर तक उतर गया। उसे बार-बार एक बात याद आ रही थी ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’।
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