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मेंढक राजा | Mendhak Raja Story In Hindi

Mendhak Raja Story In Hindi- राजमहल में जाने का जो रास्ता था, उसी रास्ते के किनारे बहुत बड़ी दीवार थी, उस दीवार के एक तरफ मेंढकों का तालाब था सोना मेंढक, मोटा मेंढक, गाछी मेंढक, मैदानी मेंढक-सभी का घर उसी तालाब के किनारे था। मेंढकों का सरदार जो बूढ़ा मेंढक था, वह दीवार के किनारे पर पुराने वृक्ष की दरार में रहता था, जो सुबह होते ही सभी को आवाज देकर जगाता था-“आ-आ-आ गेंक-गेंक-गेंक-देख-देख-देख – बेंगू-बेंगू-बेंगू-बेंगाची।

यह कहकर वह घमण्ड से गाल फुलाकर पानी में कूद पड़ता और तभी सारे मेंढक ‘आया आया आया थाक् थाक्-थाक’ कहकर नींद से 1 उठकर, मुँह धोकर, दाँत माँजकर तालाब के किनारे की सभा में बैठ जाते थे। एक दिन क्या हुआ कि सरदार मेंढक मारे फूर्ती के ऐसा उछला कि एकदम दीवार लाँचकर राजपथ के ठीक बीच में जाकर गिरा। राजा उस वक्त सभा की ओर प्रस्थान कर रहे थे।

Mendhak Raja Story In Hindi

उनके साथ सिपाही सन्तरी लाव-लश्कर, दल-बल सभी चले रहे थे। सभी के पैरों में मोटे-मोटे नागरा जूते थे वे सभी खट-खट, मच-मच, घेंच-बेंच करके कभी उसके अगल-बगल, दाएँ-बाएँ आगे-पीछे इस तरह से गुजर रहे थे कि बूढ़े मेंढक को लगा कि अब वह बचनेवाला नहीं। अचानक उसे न जाने कहाँ से किसी की लाठी या छाता या धक्का धाँय से लगा कि वह दर्द से दोहरा होकर रास्ते के किनारे पास पर चित्त होकर गिरा।

बूढ़े मेंढक को काफी चोट लगी थी, मगर उसके हाथ-पैर टूटे नहीं थे वह धीरे-धीरे उठकर बैठ गया, फिर चारों तरफ़ ताककर दीवार में बनी एक सूराख देखकर झटपट उसमें घुस गया। वहाँ से बड़ी सावधानी से गर्दन निकालकर उसने देखा, सिर पर मुकुट और रंगीन पोशाक पहने राजा, रोशनी से दमकते चार कहारों की पालकी में बैठकर राजसभा की ओर जा रहे थे।

सभी ‘लोग ‘राजा-राजा’ कहकर उन्हें प्रणाम कर रहे थे, नाच-गा रहे थे और आगे-पीछे दौड़ रहे थे। उसे लगा राजा एकबार उसकी ओर देखकर फिक् से हँसे भी। बूढ़े मेंढक ने तभी दुःख से गहरी साँस सेकर सोचा, काश हमारा भी कोई राजा होता। इसके बाद जब घूमते-भटकते रास्ता तलाशते हुए वह वापस घर लौटा, तब शाम ढलने लगी थी।

उसे देखकर सभी पूछने लगे, “बड़े सरदार, बूढ़े सरदार तुम दिनभर कहीं रहे? हम लोगों ने तुम्हें कितना पुकारा, कितना ढूंढा मगर तुमने जवाब तक नहीं दिया।” सरदार ने कहा, “चुप चुप चुप रहो। मैं राजा देखने चला गया था।” यह सुनकर सभी मेंढक एक साथ चिल्लाने लगे, “यह राजा कौन है भैया?

यह राजा कौन बूढ़ा मेंढक तब गाल फुलाकर, छाती फुलाकर दोनों आँखें बन्द करके दोनों हाथ उठाकर उछलता हुआ बोला, “राजा इत्ता बड़ा और ऊँचा होता है। बेहद गोरा तथा चमकदार प्रकाश की तरह… और उसे देखते ही सभी मिलकर उसे पुकारते हैं-राजा, राजा, राजा!

यह सुनकर सभी मेंढक कहने लगे, “काश हम लोगों का भी कोई राजा होता!” उनका कोई राजा नहीं था यह सोचते-सोचते उनकी आँख से झर-झर आँसू बहने लगे। बूढ़े मेंढक ने कहा, “मेरे भाई, आओ हम सभी राजा के लिए अर्जी दें।” तभी सब मिलकर गोलाई में बैठकर, आसमान की ओर देखते हुए विभिन्न स्वरों में पुकारने लगे, “राजा, राजा, राजा, राजा राजा, राजा, राजा, राजा-हमें राजा चाहिए, राजा चाहिए, राजा चाहिए, राजा चाहिए।” मेंढक, तालाब के मेंढक देवता, जो बादलोंवाले दिन वर्षा मेघों को झकझोर कर तालाब में पानी उड़ेलते हैं उस वक़्त वे आसमान तले चादर ओढ़कर सो रहे थे।

अचानक मेंढकों की चीख-पुकार से उनकी नींद टूट गयी। उन्होंने चारों तरफ देखते हुए कहा, “इस वक़्त न पानी बरस रहा है, न आसमान में बादल आये हैं, न उनका कहीं कोई चिह्न नजर आ रहा है। बच्चो, तुम सब इतना चिल्ला क्यों रहे हो?” मेंढक बोले, “हमारा कोई राजा नहीं है। हमें राजा चाहिए।

देवता ने कहा, “यह ले राजा!” यह कहकर उन्होंने एक सूखे पेड़ की डाल को तोड़कर उनके सामने फेंक दिया। टूटी डाल तालाब के किनारे टेक लगाकर खड़ी रही उसके सिर पर काफी बड़े-बड़े कुकुरमुत्ते चाँदनी में चमक रहे थे। यह देखकर मेंढकों के उत्साह के क्या कहने! उसके चारों तरफ़ -गोलाई में बैठकर वे मौज में आकर गाने लगे, “राजा, राजा, राजा, राजा-राजा, राजा, राजा, राजा!”

इस तरह दो दिन बीते, दस दिन बीते, आखिरकार एक दिन मेंढक सरदार की पत्नी बोली, “यह कोई राजा है। मेरे पति ने उस दिन जो राजा देखा था, वह इससे बहुत अच्छा था यह राजा न तो हिलता डुलता है, न देखता है, न सुनता है… यह राजा नहीं, खाक है।

तब फिर बूढ़ा मेंढक पेड़ पर चढ़कर बोला, “मेरे भाई लोग, आओ हम सभी निवेदन करें कि हमें एक बढ़िया राजा चाहिए।” सभी मेंढक फिर से गोलाई में बैठकर आसमान की ओर देखते हुए विभिन्न स्वर में पुकारने लगे, “राजा चाहिए, राजा चाहिए… बढ़िया राजा नया राजा यह सुनकर मेंढक देवता जागकर बोले, “अब क्या बात है? अभी तो उस दिन तुम लोगों को राजा दिया, इस बीच अचानक क्या नयी बात हो गयी?

मेंढकों ने कहा, “यह राजा नहीं, खाक है। यह राजा बदसूरत है। यह न हिलता है, न डुलता है-ऐसा राजा नहीं चाहिए, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए।” मेंढक देवता बोले, “अब शोर बन्द करो नया राजा दे रहा हूँ।” यह कहकर एक बगुले को तालाब के किनारे खड़ा करके कहा, “यह लो अपना नया राजा!

यह देखकर सारे मेंढक चकित होकर कहने लगे, “बाप रे बाप कितना बड़ा राजा है फैसा चमकदार गोरा चिट्टा है बढ़िया राजा सुन्दर राजा राजा, राजा, राजा राजा!” बगुले को उस वक्त भूख नहीं थी, मछली खाकर उसका पेट भरा हुआ था। इसलिए उसने कुछ नहीं कहा, सिर्फ़ अपनी आँखें मिचमिचाकर एक बार इधर देखा, एक बार उधर देखा, इसके बाद एक टाँग उठाकर चुपचाप खड़ा हो गया।

यह देखकर सारे मेंढक और ज़्यादा उत्साहित हो गये, ये दिल खोलकर, गला फाड़कर गाने लगे। इस तरह सुबह बीती, दोपहर बीती शाम बीती, साँझ भी ढल गयी…. इसके बाद चारों तरफ़ रात का अँधेरा छा गया। तब जाकर कहीं मेंढकों का गाना थमा। उसके दूसरे दिन सुबह-सुबह उठाकर जैसे ही उन्होंने गाना शुरू किया कि तभी बगुला राजा ने आकर एक मोटे-ताजे मेंढक को अपनी चोंच में लेकर टप्प से निगल लिया।

यह देखकर सभी मेंढक अचानक बेहद घबरा गये। राजा की स्तुति में जो गाना वह गा रहे थे, वह आवाज एकदम धीमी हो गयी। बगुला राजा मेंढक का जलपान करके एक टाँग उठाकर ध्यान की मुद्रा में खड़ा हो गया। इसी तरह सुबह-शाम एक-एक भेंटक बगुला राजा के पेट में जाने लगा। मेंढकों की दुनिया में हाहाकार मच गया। सारे मेंढक सभा करके बोले, “यह बड़े अन्याय की बात है। राजा को समझाकर कहने की जरूरत है।

आखिर वह हमारा राजा है, अगर वही ऐसा करेगा तो हम कहाँ जाएँगे? मगर उसे समझाए कौन?” मेंढक सरदार की पत्नी बोली, “इसके लिए इतना सोचने की क्या जरूरत है? इसमें परेशानी क्या है? में ही जाकर उससे कहे देती हूँ। “सरदार की पत्नी बगुला राजा के पैरों के पास जमकर बैठ गयी, फिर हाथ-मुँह हिलाकर तेज आवाज़ में बोली, “ऐ राजा, तेरा भाग्य अच्छा है कि तू हम लोगों का राजा बना।

तेरी आँखें अच्छी हैं, चेहरा अच्छा है, रंग अच्छा है, तेरी एक टांग भी अच्छी है, दोनों टाँगें भी अच्छी हैं। बस एक ही बात अच्छी नहीं है कि तु हमें खाता क्यों है? सोधें हैं उन्हें खा, कीड़े-मकोड़े, तितलियाँ इन्हें तू भी खा सकता है। राजा होकर हमें ही खाना चाहता है? छिः छिः छिः छिः- राम राम राम राम-अब ऐसा कभी मत करना।

बगुले ने देखा, उसके टाँगों के पास ही एक मोटा-ताजा मेढक बैठा है। कितना मुलायम गोल-गोल चेहरा भी है। यह सोचते ही टप्प से बगुले राजा की लार टपक गयी और खप् से सरदार पत्नी उसके मुँह में जाकर गायब हो गयी। यह देखकर मेंढकों की बोली बन्द हो गयी। सभी एकाएक चुप होकर एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। फिर मेंढक सरदार रूमाल से अपनी आँखें पोंछकर बोला, “पाजी राजा! हतभागा दुष्ट राजा!”

यह सुनकर सभी मेंढक बड़ी जोर से चीखने लगे, “पाजी राजा दुष्ट राजा! नहीं चाहिए, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए, ऐसा राजा नहीं चाहिए, राजा नहीं चाहिए।” मेंढक देवता की नींद खुल गयी ये बोले, “अरे नासपीटो, अब क्या हुआ?” 1 मेंढकों ने कहा, “बाप रे बाप बाप रे बाप कितना दुष्ट राजा है।

इसे ले जाओ, ले जाओ, ले जाओ। “तब मेंढक देवता के ‘हुश्श’ कहकर उसे भगाते ही वह पंख फैलाकर उड़ गया। उड़ गया। मेंढक अपने-अपने घरों में जाकर कहने लगे, “बैंक बैंक क-बाप बाप बापछी छीः छी:-अब कभी राजा पाने का नाम भी नहीं लेंगे।

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Rahul Patil
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Rahul Patil is the founder of TechYatri.com, With a bachelor’s degree in computer science, Rahul specializes in delivering insightful gadget reviews, software reviews, Tech trends, and detailed how-to guides. Through TechYatri, he aims to simplify complex tech concepts and provide trustworthy, reliable content to a growing audience of tech enthusiasts.

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