Murkh Budhiya Story In Hindi- एक बूढ़ा था और एक बुढ़िया थी। ये बेहद ग़रीब थे। बुढ़िया बहुत मूर्ख थी। मगर बातें बहुत करती थी। वह कहीं भी किसी से बात करने लगती थी। उसके पेट में कोई बात नहीं पचती थी। बूढ़े को एक दिन खेत जोतते वक्त जमीन के नीचे एक गगरी मिली, जो रुपयों और मोहरों से भरी थीं।
यह देखकर उसे बेहद चिन्ता हुई कि अगर वह इसे यहीं रख जाएगा तो कोई चुरा ले जाएगा और अगर घर ले जाए तो बुढ़िया को पता चल जाएगा और वह सबको बता आएगी। फिर यह बात फैल जाने के बाद राजा का कोतवाल आकर सब कुछ छीन लेगा। सोचते-सोचते उसकी समझ में एक तरीक़ा आया। उसने तय किया कि वह बुढ़िया से सच बात कहेगा। मगर कुछ इस तरह से कि लोग उसकी बातों पर यकीन न करें।
वह एक मछली खरीद लाया ओर उसे खेत के किनारे पर पेड़ के ऊपर बाँध दिया और एक खरगोश लाकर नदी के किनारे एक गड्ढे में जाल से लपेट दिया। इसके बाद उसने जाकर अपनी पत्नी से कहा, “एक बड़े आश्चर्य की ख़बर मैंने सुनी कि पेड़ की डाल पर मछलियाँ उड़ती हैं और खरगोश पानी में तैरते हैं।
हमारे ज्योतिषी महाराज कहते हैं मछली बैठी पेड़ पर नाचे खरहा पानी में। छिपा खजाना चाहो पाना खोदो उसके पास में ॥ “बुढ़िया बोली, “तुम भी कैसी बातें करते हो ? चूहे ने कहा, “वाकई ऐसा देखने में आया है।” यह कहकर बूढ़ा काम पर निकल गया।
आधा घण्टा बीतते-बीतते ही चूड़े ने दुबारा लौटकर हड़बड़ाते हुए बुढ़िया से धन प्राप्त होने की बात कही। ये दोनों मिलकर उसे लाने के लिए निकले। रास्ते में चलते-चलते बूढ़े ने उस पेड़ के नीचे आकर कहा, “ज़रा देखो तो पेड़ पर वह क्या चीज चमक रही है?” यह कहकर उसने जैसे ही एक ढेला फेंककर मारा वह मछली ज़मीन पर गिर पड़ी।
बुढ़िया हैरान रह गयी। तब बड़े ने कहा, “मैंने नदी में जाल फेंका था, जरा देख आऊँ उसमें कोई मछली फँसी या नहीं।” फिर वहाँ जाकर जात खींचते-खींचते वह बोला, “अरे बाप रे, इसमें तो खरगोश फँसा है।” बुड़े ने आगे पूछा, “क्यों अब भी तुम्हें ज्योतिषी महाराज की बात पर विश्वास नहीं हुआ?
इसके बाद वे लोग धन से भरी उस गगरी को घर ले आये। धन पाते ही बुढ़िया बोली, “मैं इससे मकान बनवाऊँगी, गहने गढ़वाऊँगी, कपड़े खरीदूंगी। “बूढ़े ने कहा, “उतावली मत हो। कुछ दिन इन्तजार करो। फिर एक-एक करके सभी कुछ हो जाएगा। अचानक सब कुछ एक साथ करने पर लोगों की सन्देह होगा।
लेकिन बुढ़िया चुप कहाँ बैठनेवाली थी। वह हर मिलनेवाले को यही बात बताने लगी। किसी ने कोतवाल तक यह सूचना पहुँचा दी। कोतवाल के आदेश से बड़े को हथकड़ी लगाकर उसके सामने पेश किया गया। बूढ़े ने सब कुछ सुनकर कहा, “यह क्या कह रहे हैं हुजूर मेरी औरत का दिमाग ठीक नहीं रहता। वह ऐसी न जाने क्या- क्या बकवास करती रहती है।
यह सुनकर कोतवाल ने डाँटते हुए कहा, “झूठे कहीं के, तूने धन पाकर उसे छिपा दिया है और अपनी औरत की शिकायत करता है?” बूढ़े ने कहा, “कैसा धन? मुझे मिला कब? कहाँ से मिला? मुझे तो कुछ भी नहीं पता।” बुढ़िया बोली, “अच्छा, तो क्या तुम्हें कुछ भी नहीं पता? अरे उस दिन, जब पेड़ की डाल पर मछली बैठी थी, नदी में जाल डालकर तुमने खरगोश पकड़ा था, क्या उस दिन की बात तुम्हे याद नहीं? वाह रे नादान !
उसकी बात सुनकर सभी हँस पड़े। कोतवाल बिगड़कर बुढ़िया से बोला, “जा पगली, घर जा! अगर फिर कभी ऐसी बेहूदी बातें कीं तो तुझे मैं क़ैद में डाल दूँगा।” बुढ़िया चुपचाप घर लौट आयी। कोतवाल के डर से उसने फिर कभी किसी को धन की बात नहीं बताई।
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