Petu Story In Hindi- हरिपद की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। सभी मिलकर उसे जोर-जोर से पुकार रहे थे, मगर हरिपद मौन था। क्यों, हरिपद क्या बहरा था? उसे कम सुनाई पड़ता था? नहीं, वह कम क्यों सुनेगा? वह तो हर बात साफ़ सुन लेता था। तो क्या हरिपद घर में नहीं था? ऐसा भी नहीं था।
हरिपद के मुँह में रबड़ी का लड़ दूंसा हुआ था न उसे फेंकते बन रहा था न निगलते। वह जवाब कैसे देता? साथ ही वह लोगों की पुकार सुनकर फटाफट आ भी नहीं सकता था … पकड़े जाने का डर था। इसीलिए यह जल्दी-जल्दी लहू पानी के सहारे निगलने की कोशिश कर रहा था। मगर निगलने की जितनी कोशिश करता, उतना ही लड्डू उसके गले में आटे की तरह चिपकता जा रहा था, बस खाँसी का दौरा पड़ना बाक़ी था।
हरिपद की यह बड़ी बुरी आदत थी। इसके लिए उसे कितनी डाँट पड़ी थी, सजा भुगतनी पड़ी थी, मगर उसे अक्ल नहीं आयी। वह चोरी-छिपे पेटुओं की तरह खाता ही रहता। जैसा हरिपद था, वैसा ही उसका छोटा भाई भी था। हालाँकि उसे कुछ भी हजम नहीं होता था, दो-चार दिन बाद ही उसे पेट की बीमारी हो जाती थी, मगर लोभ नहीं कम होता था।
जिस दिन उसे ज़्यादा तकलीफ़ हो जाती, उसके बाद कुछ दिनों तक वह ऐसा काम न करने की प्रतिज्ञा करता। देर-सवेर के अखाद्य खाने-पीने से रात में जब उसका पेट दुखता तब वह रोते हुए कहता, “अब और नहीं, यही आखिरी बार था।” मगर दो दिन बीतते-न-बीतते फिर वही सिलसिला शुरू हो जाता।
अभी कुछ दिन पहले ही बुआजी के कमरे में दही खाते हुए यह पकड़ा गया था। काफ़ी भुगतना भी पड़ा। मगर उसे शर्म नहीं आयी। हरिपद के छोटे भाई श्यामापद ने आकर उससे कहा, “दादा, जल्दी चलो। बुआजी ने अभी-अभी हाण्डी भर दही अपने खाट के नीचे छिपाकर रखा है।” उसे बड़े भैया को इतनी उतावली के साथ ख़बर देने की जरूरत इसलिए पड़ी थी, क्योंकि बुआजी के कमरे के दरवाजे की सकल तक उसका हाथ नहीं पहुँच पाता था।
इसीलिए उसे बड़े भैया की सहायता की जरूरत पड़ी थी। बड़े भैया ने धीरे से सॉकल खोलकर झपटकर पहले ही खाट के नीचे रखी दही की हाण्डी से मुट्टीभर दही निकालकर मुँह में भर लिया और दूसरे ही क्षण वह चीखने लगा-जैसा कि बोलचाल में लोग कहते हैं-साँड की तरह चिल्लाना। लेकिन हरिपद उससे भी ज़्यादा भयावह रूप से चीख रहा था। उसकी चीख सुनकर माँ-मौसी, दीदी-बुआ जो जहाँ थीं, भागकर वहाँ पहुँची श्यामापद चालाक था।
वह बड़े भैया की चीख का नमूना सुनते ही वहाँ से भागकर घोष मुहल्ले में चला गया। वहाँ पहुँचकर भले लड़के की तरह अपने दोस्त शान्ति घोष से पढ़ाई का पाठ समझने लगा। इधर हरिपद की हालत देखकर बुआजी समझ गयी कि हरिपद ने दही के धोखे से उनकी चूने की हण्डिया से चूना चख लिया है। उस बार हरिपद को जबर्दस्त सजा मिली।
सप्ताह भर तक न उससे कुछ खाते और न निगलते बना। उसके लोभ से ही उसकी ऐसी आफ़त आयी थी। इसके बावजूद वह लज्जित नहीं हुआ। आज फिर वह छिपकर लड़ खा रहा था। उधर उसके मामा उसे हाँक लगा-लगाकर परेशान हो रहे थे।’ घोड़ी देर बाद अपना मुँह धो-पोंछकर हरिपद सुशील बालक की तरह हाजिर हो गया।
हरिपद के बड़े मामा बोले, “अरे, अभी तक कहाँ था?” हरिपद ने जवाब दिया, “यहीं ऊपर तो था।” “तो फिर हम लोग इतना पुकार रहे थे, तूने जवाब क्यों नहीं दिया?” हरिपद ने सिर खुजलाकर कहा, “जी, पानी पी रहा था।” “सिफ़ जल? या कुछ स्थल भी था ?”
हरिपद ऐसे हँसा, जैसे उससे कोई तगड़ा मज़ाक़ किया गया हो। तभी उसके मँझले मामा बेहद गम्भीर होकर वहाँ उपस्थित हुए। उन्हें भीतर से ख़बर मिली थी कि हरिपद कुछ देर पहले भण्डार घर में घुसा था और उसके बाद से ही दस-बारह रबड़ी के लड्डू कम हो गये थे। वे आते ही हरिपद के मामा से अंग्रेजी में फुसफुसाकर कुछ बोले।
इसके बाद सबको सुनाते हुए उन्होंने गम्भीरता से कहा, “घर में चूहों का जैसा उत्पात शुरू हुआ है, उससे लगता है कि चूहों को मारने का कोई वन्दोवस्त किये बिना काम नहीं चलनेवाला। चारों तरफ़ प्लेग की महामारी और बीमारी भी फैली हुई है। इस मुहल्ले के चूहों को ख़त्म किये बिना जान नहीं बचनेवाली।” बड़े मामा बोले, “हाँ, इसका इन्तजाम भी कर लिया गया है।
दीदी से मैंने ज़हर के बनाने के लिए कहा है उन्हें एक बार चारों तरफ़ रख देने से ही चूहों का समूल विनाश हो जाएगा।” हरिपद ने पूछा, “लड कब बनाए जाएँगे?” बड़े मामा वोले, “अब तक वे बन गये होंगे। सुबह ही मैंने देखा कि टेंपो थाली भर रबड़ी लेकर दीदी के साथ लहू बना रही थी।
हरिपद का चेहरा आम की खटाई की तरह सिकुड़ गया। उसने लौर निगलकर पूछा, “धतूरे का जहर खाने से क्या होता है बड़े मामा ?” “क्या होगा! सारे चूहे मर जाएँगे, यही होगा।” “और अगर कोई आदमी ऐसे लड़ खा ले?” “एक आध अगर खा ले तो शायद न मरे…मगर गले में जलन होगी, चक्कर आने लगेंगे, उल्टी होने लगेगी, शायद हाथ-पैरों में ऐंठन भी होने लगे “और अगर वह एक साथ ग्यारह लड्डू खा ले ?
कहते हुए हरिपद ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। यह देखकर बड़े मामा किसी तरह अपनी हँसी दबाकर बड़ी गम्भीरता से बोले, “यह क्या कह रहा है। क्या तूने खाये हैं?” हरिषद ने रोते हुए कहा, “हाँ बड़े मामा, उनमें पाँच तो काफी बड़े लड़ थे। तुम जल्दी डॉक्टर बुलाओ बड़े मामा, मुझे जाने कैसी हरारत लग रही है और उल्टी भी हो रही है।”
मँझले मामा झटपट जाकर अपने दोस्त रमेश डॉक्टर को पड़ोस से बुला जाए। उन्होंने पहले एक बेहद कड़वी दवा हरिपद को खिलाई। उसके बाद उसे न जाने क्या सूँघने को दिया। वह इतनी तेज थी कि बेचारे की दोनों आँखों से खूब पानी निकलने लगा। इसके बाद सभी ने उसे रजाई कम्बल ओढ़ाकर उसे पसीने के मारे बेचैन कर दिया। उसके बाद उसे एक न जाने कैसी दवा पिलाई गयी। वह इतनी बेस्वाद और बदबूदार थी कि उसे पीते ही हरिपद उल्टी करने लगा।
इसके बाद डॉक्टर साहब जाते-जाते उसके पथ्य के बारे में बता गये, “तीन दिन तक वह चुपचाप बिस्तर पर लेटा रहे चिरेता का पानी और साबूदाना छोड़कर उसे कुछ न दिया जाए ।” हरिपद ने कहा, “मैं ऊपर माँ के पास जाऊँगा?” डॉक्टर ने कहा, “नहीं, जब तक बचने की उम्मीद है, तब तक जरा भी हिलना-डुलना मना है। वह यहीं पर आप लोगों के पास ही रहे।” बड़े मामा ने कहा, “हाँ हाँ, माँ के पास जाओगे या और कुछ! माँ को चिन्तित करके क्या लाभ? उन्हें इस वक्त ख़बर देने की कोई जरूरत नहीं है।
तीन दिन बाद जब उसे रिहाई मिली, तब वह पहलेवाला हरिपद नहीं रह गया था। वह एकदम बदल गया था। उसके घर के सभी लोगों को तो यही पता था कि हरिपद बेहद बीमार हो गया था। उसकी माँ से भी यही कहा गया था कि ज़्यादा लड्डू खाने से उसका पेट खराब हो गया था। हरिपद समझ रहा था कि ज़हर खाकर मरने से वह बाल-बाल बच गया था। लेकिन असली बात तो हरिपद के बड़े और मंझले मामा तथा रमेश डॉक्टर को ही पता थी और अब इस कहानी को पढ़कर तुम सब भी जान चुके हो।
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