Sikh Tako Dijiye, Jako Sikh Suhay Story In Hindi- जंगल में खार के किनारे एक बबूल का पेड़ था। उसमें लगे पीले फूल महक रहे थे। आसमान में चारों और बादल छाए हुए थे। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। मोसम बड़ा सुहावना था। इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी। इसी डाल पर बिल्कुल आखिर में बया पक्षी का एक घोंसला था। इसी घोंसले पर बया और बयी दोनों झूल रहे थे और मौसम का आनंद ले रहे थे।
बबूल के पास ही सहिजन का पेड़ था, जो हवा के झोंकों में झूम रहा था। बादल तो छाए थे ही, देखते-ही-देखते विजली चमकने लगी। बादल गरजने लगे और मोर-मोरनियों के नृत्य ‘पीकां-पीका’ की आवाज से सारा जंगल भर गया। टिटहरियां भी आकाश में आवाज करती हुई उड़ने लगी। बड़ी-बड़ी बूँदें भी गिरने लगीं और थोड़ी देर में मूसलाधार बरसात होने लगी।
इसी बीच एक बंदर सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया। उसने पेड़ के पत्तों से छिपकर बचने की बहुत कोशिश की, लेकिन बच नहीं सका। पेड़ पर बैठा-बैठा भीगता रहा। बंदर सोच रहा था कि जल्दी से जल्दी वर्षा रुके, लेकिन ठीक उलटा हुआ ओले गिरने शुरू हो गए। हवा और तेज चलने लगी सदी हो गई।
बंदर ठंड से कांपने लगा और जोर-जोर से किकियाने लगा। वातावरण अजीब-सा गंभीर हो गया बंदर की इस हालत को देखकर क्या पक्षी से रहा न गया और बोला पाकर मानुस जैसी काया, ढूंढ़त घूमो छाया। चार महीने वर्षा आवै, पर न एक बनाया ॥
बंदर ने बया पर तिरछी नजर डाली पर बया पर घूरने का कोई असर नहीं पड़ा क्या सोचता था कि बंदर मेरा क्या बिगाड़ेगा घोंसला इतनी पतली टहनी पर है कि मुझ तक आ पाना उसकी ताकत के 1 बाहर की बात है। बया ने बंदर को फिर समझाया, “हम तो छोटे जीव हैं, फिर भी घोसला बनाकर रहते हैं। तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो।
तुम्हारे वंशज जब घर बनाकर रहते हैं, तो तुम्हें भी कम-से-कम चौमासे के लिए तो कुछ-न-कुछ बनाकर रहना ही चाहिए। कहीं उप्पर ही डाल लेते। क्या की इतनी बात सुनते ही बंदर बुरी तरह बिगड़ गया। उसने आव देखा न ताव, उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया। कांटों को बचाते हुए उसने उस पतली टहनी को जोर-जोर से हिलाना शुरू कर दिया, जिस पर क्या पक्षी का घोंसला था।
घोलला उलटा-सीधा होते देखकर वे उड़कर सहजन के पेड़ पर बैठ गए। बंदर ने टहनी तोड़कर ऊपर खींच ली घोंसला हाथ में आते ही बंदर ने नोच-नोच कर तोड़ दिया और टहनी सहित घोंसले को नीचे फेंक दिया नीचे खार में वर्षा का पानी तेजी से वह रहा था घोंसला और टहनी उसी में बहे चले गए।
नर बया और मादा बयी, दोनों पूरे दुख के साथ पानी में भीगते रहे। उन्हें बड़ा ही खेद हो रहा था। सामने हरे-भरे और लहलहाते टीले पर एक छोटी-सी कुटिया थी। उसके बाहर बैठा एक संत स्वभाव का व्यक्ति माला फेर रहा था। यह सब नाटक वह बड़े ध्यान से देख रहा था। बया और बयी पर उसे तरस जाने लगा और उसके मुंह से अचानक निकल पड़ा ‘सीख ताको दीजिए, जाको सीख सुहाय। सीख न दीजे बांदरे, बया का भी पर जाय ॥”
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