दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम देखने वाले है solar e-waste kya hai ? जिसका मैनेजमेंट भारत के सामने एक बड़ी चुनौती है . दोस्तों बिजली उत्पादन के लिए सबसे अच्छा विकल्प सोलर पैनल है. और इससे बिजली का उत्पादन करना बाकि स्त्रोतों से काफी आसान भी है. भारत के साथ ही चीन और कई सारे प्रगतशील देशो में सोलर पैनल पर गंभीरता से काम किया जा रहा है !
लेकिन इन सभी फायदों के बिच सोलर ई-वेस्ट की गंभीर समस्या उभरकर आई है. BTI के रिपोर्ट के अनुसार इस समस्या को काफी गंभीर समस्या बताया गया है. और आने वाले ३० साल में यह सभी देशो के सामने एक चुनौती बनकर सामने आने वाली है. तो आज के इस आर्टिकल में हम इसी विषय पर चर्चा करने वाले है की आखिर सोलर ई-वेस्ट है क्या और यह किस प्रकार से चुनौती बनकर हमारे सामने आने वाली है. तो दोस्तों आर्टिकल पूरा जरूर पढ़े ताकि आप भी इसकी गंभीरता को समज सके !
सोलर ई-वेस्ट क्या है ? solar e-waste kya hai
दोस्तों आप सभी को सोलर पैनल के बारे में तो पता ही होगा जिसका उपयोग बिजली निर्माण करने के लिए किया जाता है. और बिजली उत्पादन के सभी स्त्रोतों में से सोलर पैनल से बिजली निर्माण करना आसान होता है. लेकिन सोलर पैनल बनाने में काफी खतरनाक रसायनो का उपयोग किया जाता है जैसे की सिलिकॉन टेट्राक्लोराइड, कैडमियम, सेलेनियम और सल्फर हेक्साफ्लोराइड.
सौर ई-कचरा सौर ऊर्जा उत्पादन में इस्तेमाल में आने वाले उपकरणों का कचरा होता है. किसी भी जगह पर सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए सोलर पैनल या सोलर मॉड्यूल्स लगाए जाते है. कोई भी सोलर पैनल एक बार लगा दिए जाने के बाद निश्चित समय तक ही काम करते है !
एक वक्त के बाद इनकी उम्र ख़त्म हो जाने पर यह बेकार हो जाते है. आम तौर पर किसी भी सोलर पैनल की औसत उम्र २० से २५ साल की होती है. इस नियात के बाद यह इस्तेमाल करने लायक नहीं रह जाते. और सोलर ई-वेस्ट के रूप में तब्दील हो जाते है. यही नहीं कई बार इस्तेमाल होने के दौरान पैनल के जलने, टूटने या फिर किसी भी प्राकृतिक आपदा का शिकार बनने पर भी यह सोलर ई-वेस्ट बन जाते है !
सोलर ई-वेस्ट, भारत के लिए भविष्य का संकट
दोस्तों हम भविष्य का विचार न करते हुए सोलर पैनल का इस्तेमा करते जा रहे है. लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है की सोलर ई-वेस्ट कहा पर जाता है. क्योकि इस कचरे से दोबार सोलर पैनल का निर्माण करना काफी मुश्किल कार्य होता है. तो चलिए देखते है की सोलर ई-वेस्ट, भारत के लिए भविष्य का संकट यह विषय चर्चा में क्यों है !
सोलर ई-वेस्ट चर्चा में क्यों ?
पर्यावरण की चिंता करते हुए हम अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से ग्रीन एनर्जी की और कदम बढ़ा रहे है. इसी के चलते भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन को काफी अहमियत दी जा रही है. और बड़ी तादात में देश भर में सोलर पैनल लगाए जा रहे है. जिससे एक तरफ पर्यावरण सुरक्षा के साथ हमारी ऊर्जा जरूरते पूरी हो रही है. तो दूसरी तरफ गैरनवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों पर हमारी निर्भरता धीरे धीरे कम भी होती जा रही है !
लेकिन जब पर्यावरण के सुरक्षा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक पर्यावरण के लिए ही खतरा बन जाये तो इसे क्या कहेंगे. ऐसा ही कुछ मुमकिन है सोलर एनर्जी के साथ. एक निजी एनर्जी कंसल्टेंसी फॉर्म BTI ने हाल ही में जारी अपने अध्ययन में ऐसी ही चिंता जाहिर की है. इस अध्यन के मुताबिक २०५० तक भारत में सौर ई-कचरा यानि फोटो वॉल्टिक वेस्ट का बड़ा अम्बार लग जायेगा. सौर इ कचरे का अम्बार भविष्य में एक बड़ी चुनौती बन सकता है !
BTI याने (ब्रिज टू इंडिया) का कहना है की सोलर ई अप्सेस्ट प्रबंधन और फोटोवॉल्टिक विनिर्माण के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री के मानकों पर भारत सरकार को जल्द से जल्द निति बनाने की जरुरत है. आने वाले कुछ सालो में भारत में ई-कचरे की एक नयी श्रेणी सौर ई-कचरा का निपटारा एक बड़ा मुद्दा होगा. क्योकि जितने उत्साह से हम सोलर पैनल लगाते जा रहे है उतनी ही अनदेखी हम इससे पैदा होने वाले कचरे की कर रहे है !
यह अनदेखी शायद अभी कोई बड़ा मुद्दा ना हो लेकिन आने वाले वक्त में सोलर ई-वेस्ट बड़ा संकट हो सकता है. ऐसे में सवाल है की पर्यावरण सुरक्षा में सौर ई-कचरा किस हद तक खतरनाक है. सवाल यह भी की सौर ई-कचरे के प्रबंधन के लिए भारत कितना तैयार है !
BTI की रिपोर्ट क्या कहती है
ब्रिज टू इंडिया ( BTI ) ने अपने अध्ययन में देश भर में बढ़ते सौर ई-कचरे पर चिंता जताई है. BTI का कहना है की पिछले कुछ महीनो में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत सरकार ने कही अहम् पहलो की शुरुवात की है. जैसे की रूफ्ट ऑफ़ सोलर प्लांट सप्सिडी के लिए सृष्टि योजना, किसानो के लिए सौर ऊर्जा सयंत्रण लगाने के लिए कुसुम योजना, सौर पैनल मॉडल के लिए स्किम शुरू की गयी है. सरकार बड़े पैमाने पर सोलर पैड लगाकर इस क्षेत्र में भरी निवेश कर रही है !
इन सबके बिच भविष्य खड़ी होने वाली एक बड़ी समस्या ई-कचरे को सिरेसे नकारा जा रहा है. इस चिंता को सामने रखते हुए ब्रिज टू इंडिया ( BTI ) ने अपने अध्ययन में बताया है की भारत में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल होने वाले फोटोवॉल्टिक मॉड्यूल यानि सौर पैनल के अप्सेस्ट की मात्रा लगातार बढ़ रही है. इसमें भारत में सोलर ई-कचरे के २०५० तक १.८ मिलियन टनसे ज्यादा हो जाने की आशंका जताई गई है !
अध्ययन के मुताबिक फोटोवॉल्टिक अप्सेस्ट की मात्रा २०३० तक २ लाख टन और २०५० तक तकरीबन १. ८ मिलियन टन बढ़ने का अनुमान है. ऐसा ही अनुमान २०१६ में अंतराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजंसी ने अपने रिपोर्ट में किया था. इसमें कहा गया था की वर्तमान में दुनिया भर में २.५० लाख मीट्रिक टन सोलर पैनल मौजूद है. जो २०५० तक ६० से ७८ मीट्रिक टन के आकड़े तक पहुँच सकता है. भारत और चीन जैसे देश जो की बड़ी मात्रा में सौर ऊर्जा क्षेत्र में निवेश कर रहे है वे बड़ी मात्रा में सोलर ई-वेस्ट पैदा करने वाले देश बन जायेगे !
सोलर ई-वेस्ट का क्या असर होता है
सौर पैनल में फोटोवॉल्टिक सेल सबसे एहम होता है. हमारे देश में इस्तेमाल होने वाले फोटोवॉल्टिक मॉड्यूल कांच, धातु, सिलिकॉन और बहुलक अंशो से बने होते है. इनमे तक़रीबन ८० % हिस्सा कांच और अल्युमिनियम का होता है. जो खतरनाक नहीं होता लेकिन २० % हिस्सा सीसा, पॉलिमर और कैडमियम यूओगिक जैसे खतरनाक पदार्थो से बनाया जाता है !
फोटोवॉल्टिक मॉड्यूल में भारी धातुएं होती है. जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है. अगर इनका निपटान ठीक से नहीं किया जाता है तो इनका शरन होने लगता है. जो न केवल पर्यावरन सरक्षा के लिहाज से बल्कि मानव स्वास्थ के लिए और जिव जगत के लिए भी बेहत खतरनाक होते है. इनके कारन पर्यावरन जैवविविधता का की कमी पेड पौधो और जीवो के विकास और प्रजनन दर में गिरावट देखने मिलती है. साथ ही कही स्वास्थ संबंधी खतरे भी होते है !
सोलर ई-वेस्ट के संदर्भ में भारत की स्थिति
भारत सौर ऊर्जा क्षेत्र में लगातार मजबूत हो रहा है. हालांकि भारत का सौर ऊर्जा क्षेत्र अभी भी अपनी नवजात अवस्था में है लेकिन हमारी सौर ऊर्जा स्थापित क्षमता में आठ गुना बढ़ गई है. इसी का नतीजा है की सौर ऊर्जा क्षमता २०१४ में जहा २.६३ गीगा वॉट थी वही अब २०२० में यह ४० गीगावॉट हो गई है. इसके साथ साथ भारत दुनिया में सौर सेल के लिए अग्रणीय बाजारों में से एक बनकर उभरा है !
लेकिन हमारे देश में सोलर पैनल नहीं बनाये जाते. बल्कि हम इसे चीन, सिंगापौर, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देशो से आयात करते है. अब तक देश भर में स्थापित किये गए तक़रीबन सभी सौर संयंत्र काफी हद तक बाहर से आयात किए गए फोटोवॉल्टिक सेल पर आधारित है. वही भारत सरकार ने २०२२ तक १०० गीगा वॉट सौर ऊर्जा का लक्ष रखा है. इससे यह तो जाहिर होता है सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने पर लगातार ध्यान दे रहे है !
लेकिन यह भी साफ हो जाता है की हम सौर ई-कचरे जैसे भयानक समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे है. इन्ही हालातो को देखते हुए सौर कचरे के २०५० तक १.८ मिलियन टन पहुँच जाने का अनुमान जताया जा रहा है. यह मात्रा देश में फिलहाल सालाना पैदा हो रहे ई-कचरे के तक़रीबन बराबर है. अंतराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजंसी ने की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत २०५० तक ६०० गीगा वॉट का सोलर फोटोवॉल्टिक ऊर्जा वाला देश होगा. जिससे भारत ७.५ मिलियन सौर ई-कचरे पैदा कर सकता है इससे भारत २०५० सौर ई-कचरा पैदा करने वाले ५ शीर्ष देशो की लिस्ट में शामिल हो जायेगा !
अंतिम शब्द
तो दोस्तों यह था solar e-waste kya hai ? solar e waste kya hai in hindi और इसकी गंभीर समस्याओं के बारे में कुछ जानकारियां उम्मीद है आपको समज आ गया होगा की सोलर ई-वेस्ट क्या है और यह किस तरह से भारत के सामने चुनौती है. अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ जरुरु शेयर करे. ताकि वह सोलर ई-वेस्ट के बारे में जान सके. और वेबसाइट के नोटिफिकेशन बेल को ऑन कर दे ताकि आप कोई भी आर्टिकल मिस ना करे. अगर आपको इस आर्टिकल से जुडी कोई भी समस्या हो तो आप हमें कमेंट करके पूछ सकते है धन्यवाद !