दोस्तों आज के आर्टिकल में हम देखने वाले है स्टेल्थ टेक्नॉलजी क्या है ? और इसका किस प्रकार उपयोग किया जाता है . दोस्तों समय के अनुसार देश को अपने युद्ध नीतियों को भी बदलना पड़ता है . हर देश अपने आपको ताकतवर बनाने में लगा रहता है . उसीसे कई अलग अलग तकनीकों का जन्म होता है . स्टेल्थ टेक्नोलॉजी भी उसी का एक हिस्सा है . जिसे की युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया जाता है . तो चलिए जानते है की इसे किस देश द्वारा विकसित किया गया और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है !
स्टेल्थ टेक्नॉलजी क्या है – What is stealth technology
दोस्तों स्टेल्थ टेक्नोलॉजी एक युद्ध की टेक्नोलॉजी है जिसे की फाइटर जेट में इस्तेमाल किया जाता है . दोस्तों अगर कोई भी साधारण फाइटर जेट अगर किसी देश की सिमा को पार करता है तो रडार की माध्यम से उस देश को तुरंत पता चल जाता है . की कोई प्लेन उसके देश की सिमा को पार कर अंदर आया है . और वह देश तुरंत ही उस प्लेन को मार गिराता है !
इसलिए इस तकनीक की खोज की गयी . Stealth Technology का मतलब एक ऐसा प्लेन जो की रडार पर विजुअल न हो और उसके मौजूदगी का अहसास कम से कम हो . अगर यह प्लेन किसी भी देश की सिमा को पार करता है तो उस देश को उसके बारे में बिकुल पता नहीं लगता क्योकि यह टेक्नोलॉजी जेट से निकलने वाले तरंगो को रडार तक नहीं पहुँचने देती !
उन्हें अलग अलग दिशा में भेज देती है यह अगर यह प्लेन किसी भी देश की सिमा को पार करता है तो उस प्लेन की लोकेशन और आवाज भी किसी तक नहीं पहुँच पति क्योकि इस प्लेन को खास तरीके के मटेरियल से तैयार किया जाता है जिससे की यह प्लेन से निकलने वाले तरंगो को रडार तक नहीं पहुँचने देता और उन्हें अलग अलग दिशा में भेज देता है !
स्टेल्थ टेक्नोलॉजी का जन्म कब हुवा
यह बात है दशक १९९० की अमेरिका और इराक में कुवैत के अवैद कब्जे को लेकर जबरदस्त तनाव था युद्ध की पूरी सम्भावना हो चुकी थी . तारिक १७ जनवरी १९९१ अमेरिका का एक एयरक्राफ्ट सारे डिफेन्स और रडार को चकमा दे कर इराक की सिमा पार कर अंदर घुस गया . जिसके मौजूदगी का अहसास किसी को नहीं था . रडार भी उसे कैच नहीं कर पाया और उसने अंदर घुसकर कुवैत में तैनात चौकी पर एक बम गिराया !
और इस बम धमाके के बाद एक नए शब्द का जन्म हुवा जिसे हम सब स्टेल्थ टेक्नोलॉजी के नाम से जानते है . दोस्तों अगर अभी के समय में देखा जाये तो तो स्टेल्थ टेक्नोलॉजी को काउंट करने के लिए नए राडार की खोज भी शुरू हो चुकी है . लेकिन हालही के समय में ऐसा कोई रडार नहीं है जो की स्टेल्थ टेक्नोलॉजी को पकड़ सके . लेकिन आने वाले समय में ऐसे रडार भी बन कर तैयार हो जायेंगे जो की इसकी फ्रीक्वेंसी को कैच सके . क्योकि कई सारे विकसित देश इसके खोज में लगे हुए है !
स्टेल्थ टेक्नोलॉजी कैसे काम करती है ?
दोस्तों इस टेक्नोलॉजी में सबसे पहली चीज आती है जेट की डिजाइन . जो की कठिन और जोमेट्रिकल डिजाइन होती है . जिससे की रडार एनर्जी को दूसरी दिशा में डाइवर्ट कर देता है . इसके इंजिन में सुपर सॉनिक स्पीड से हवा को गुजरने के बजाय सब सॉनिक स्पीड में हवा को कम प्रेस किया जाता है . जिससे सॉनिक वॉल्यूम जनरेट न हो और आवज से जेट पकड़ में ना आए !
आपने कई बार देखा होगा साधारण जेट में बॉम और गन्स लगे होते है . जो की आसानी से देखे जा सकते है क्योकि वह ऊपर ही लगे होते है . जिसके कारन यह रडार एनर्जी को रिफ्लेक्ट करते है . और तुरंत जेट को पकड़ा जा सकता है . इसलिए इस टेक्नोलॉजी में एक ऐसा सिस्टम होता है जो वेपन्स की डिलेवरी करता है और वेज को तुरंत बंद कर देता है . लेकिन यह एक बार में केवल एक ही बॉम को डिलेवर करता है जिससे की यह रडार की नजर में नहीं आता !
स्टेल्थ टेक्नोलॉजी के फायदे
1. इस टेक्नोलॉजी से बना जेट आवाज काफी कम करता है जिससे अगर किसी भी दूसरे देश में घुसना हो तो यह आसानी से घुस सकता है बिना आवाज किए .
2. यह जेट रडार से निकलने वाले किरनो को दूसरी दिशा में भेज देता है जिससे की किरने वापिस रडार तक नहीं पहुँच पाती और इसके मौजूदगी का अहसास किसी को नहीं होता .
3. इस जेट में वेपन्स के लिए इनबिल्ट सुविधा होती है जो की बॉम को डिलेवर करने के तुरंत बाद बाकि वेपन्स को अंदर छुपा लेता है जिससे वह रडार की पकड़ में नहीं आता .
4. यह जेट कही से भी उड़ान भर सकता है अगर इसे ५० मीटर का भी रन वे मिलता है तो यह उड़ान भर सकता है जिससे की यह अगर कई पार भी फस जाये तो आसानी से निकल सकता है .
स्टेल्थ टेक्नोलॉजी की मेंटेनेंस स्थिति
दोस्तों यह टेक्नोलॉजी जितनी इस्तेमाल करने में लाभदायक और उपयोगमंद है उतनी ही महंगी भी है. इसके प्रति घंटे की उड़ान मेंटेनेंस की कॉस्ट काफी ज्यादा है . कोई भी देश पूरी की पूरी फ्लीट स्टेल्थ की नहीं रख सकता क्योकि स्टेल्थ की हर एक डिग्री इसके खर्चे को बहुत ही ज्यादा बढ़ा देती है . इसके हर एक शॉट के बाद इसके रेडिओ ऑब्जर्विंग मटेरियल के पार्टिकल टूट जाते है !
जिन्हे रिपेर करना होता है . हर शॉट के बाद इसे फिरसे पेंट करना पड़ता है . और हर शॉट के बाद इसके इंजन को पूरा निकाला जाता है . क्योकि इंजन के वाइब्रेशन को रोकने के लिए इंजन को खास फैब्रिक से लपेटा जाता है . जो की जेट के शॉट के टाइम जल जाता है . इसी लिए इसे हर शॉट के बाद बदलना पड़ता है . और इसके लिए काफी सारे अलग अलग हार्डवेयर की भी जरूरत होती है !
जिससे की इसकी मेंटेनेंस कॉस्ट काफी ज्यादा बढ़ जाती है . उदाहरण के लिए F2o2 आयसा रडार में किसी भी ऑब्जेक्ट को पकड़ने के लिए दो हजार एलिमेंट लगे होते है . और हर एक एलिमेंट प्रति सेकंड अपनी फ्रीक्वेंसी दस हजार बार बदलता है . इसी से आप इसके कीमत का और मेंटेनेंस कॉस्ट का अंदाजा लगा सकते है . इसी लिए कोई देश अगर इसे खरीद भी ले तो इसे इस्तेमाल करने से पहले १० बार जरूर सोचेगा क्योकि इसकी मेंटेनेंस कॉस्ट काफी ज्यादा है !
अंतिम शब्द
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