Yagyadas Ke Mama Story In Hindi– उसका असली नाम यज्ञदास था। वह जिस दिन पहली बार हमारी कक्षा में आया, पण्डितजी ने उसका नाम सुनते ही आहे सिकोड़कर कहा, “यज्ञ का भी भला दास होता है? यशेश्वर होता तब भी कोई बात थी।” उसने कहा, “जी, अपना नाम मैंने तो नहीं रखा है, यह नाम ताऊजी का दिया हुआ है।
यह सुनकर मुझे जरा हँसी आ गयी, जिससे पण्डितजी ने मेरी ओर देखकर कहा, “यज्ञदास के हिज्जे बता।” मैंने थोड़ा घबराते हुए कहा, “वर्गी का ज…” पण्डितजी बोले, “तू खड़ा हो जाए इसके बाद जब एक लड़के ने सही जवाब दिया तो उन्होंने एक और लड़के से कहा, “समास कर।” उसने अपनी संस्कृत विद्या दर्शाते हुए कहा, “योग्यश्चेति दासश्चासो ।
पण्डितजी उसका कान पकड़कर बोले, “बेंच पर खड़ा हो जा! दो दिन बीतते-बीतते पता चल गया कि यज्ञदास को और कोई विद्या आये या न आये, उसमें अजीबोगरीब कहानियाँ कहने की असाधारण क्षमता थी। एक दिन वह देर से स्कूल में आया। कारण पूछने पर उसने कहा, “आते वक़्त रास्ते में पच्चीस कुत्ते मुँह फाड़कर मेरे पीछे पड़ गये थे।
मैं भागकर हाँफते हाँफते उस कुण्डू के घर तक चला गया था।” हम लोगों ने तो पच्चीस कौन कहे, दस कुत्ते भी कभी एक साथ नहीं देखे थे, इसलिए मास्टर साहब को भी यकीन नहीं हुआ। उन्होंने पूछा, “ऐसी झूठी बातें बनाना किससे सीखा?” यज्ञदास ने बताया, “जी, अपने मामा से।” उस दिन हेडमास्टर के कमरे में यज्ञदास की पेशी हुई थी। वहाँ क्या हुआ, हमें पता नहीं। मगर यज्ञदास खुश नहीं था, यह बात समझ में आ गयी।
मगर सच हो या झूठ, क़िस्सा कहने में वह उस्ताद था। वह जब अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर बड़े गम्भीर गले से अपने मामा के यहाँ डाकू पकड़े जाने का किस्सा सुनाता, तब यकीन आये चाहे न आये, हमारे मुँह अचरज से खुल जाते यज्ञदास के मामा का वर्णन तो हमें बेहद आश्चर्यजनक 1 लगता। उनके शरीर में जैसा बल था, वैसी ही उनकी असाधारण बुद्धि थी।
वे जब अपने नौकर रामभजन को पुकारते थे, तब पूरा मकान बरबराकर काँप उठता। चाहे कुश्ती हो या लाठी भाजना या क्रिकेट, सभी में वे बेजोड़ थे। पहले तो हम लोगों को उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ था। लेकिन एक दिन उसने हमें अपने मामा का फ़ोटो दिखाया।
हमने देखा, वाक़ई पहलवानों जैसा उनका चेहरा था। स्कूल में जब भी छुट्टी होती, यज्ञदास अपने मामा के यहाँ चला जाता। वहाँ से लौटकर वह जो-जो क्रिस्से हमें सुनाता, ये अखबार में छपने लायक होते। एक दिन यज्ञदास से स्टेशन पर मेरी भेंट हो गयी। मैंने देखा, गाड़ी में सिर पर पगड़ी बाँधे लम्बी-चौड़ी कद-काठीवाले कोई देहाती सज्जन बैठे थे।
मैंने स्कूल आते वक़्त यज्ञदास से पूछा “क्या तुम्हारी भी उस पगड़ीवाले भारी-भरकम व्यक्ति पर नजर पड़ी?” यज्ञदास ने कहा, “वह तो मेरे मामा थे।” मैंने कहा, “तस्वीर में तो ये काले नजर आ रहे थे।” यज्ञदास बोला, “वे इस बार शिमला जाकर गोरे हो गये हैं। मैंने स्कूल पहुँचकर सभी को बताया कि मैंने आज यज्ञदास के मामा को देखा है।
यज्ञदास ने भी सीना फुलाकर अपना चेहरा गम्भीर करके कहा, “तुम लोग तो मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते। ठीक है, बीच-बीच में मैं एकाध गप्प सुना देता हूँ। ऐसा नहीं कि सभी बातें मेरी गढ़ी हुई होती हैं। मेरे जीते-जागते मामा को भी तुम लोग नकार देना चाहते हो।” इस बात पर कइयों को शर्म भी महसूस हुई। वे कहने लगे, “नहीं भाई, हमें शुरू से ही तुम्हारी बातों पर भरोसा था।
इसके बाद से यज्ञदास के मामा का रुतबा और ज़्यादा बढ़ गया। मामा के बारे में जानने के लिए हम लोग उत्सुक रहते। किसी दिन सुनते उसके मामा हाथी, गेण्डे, बाघ के शिकार को गये हैं, किसी दिन सुनते, उन्होंने अकेले ही पाँच काबुलीवालों को पीटकर दुरुस्त कर दिया है। ऐसे किस्से हम अक्सर सुनते।
एक दिन जब हम सभी टिफ़िन के समय बैठकर बातें कर रहे थे, तब हेडमास्टर साहब ने कक्षा में आकर कहा, “यज्ञदास, तुम्हारे मामा आये हैं।” अचानक यज्ञदास का चेहरा आम की खटाई की तरह सिकुड़ गया। वह बड़े संकोच से कुछ कहने को हुआ, पर कह नहीं पाया। वह एक भले लड़के की तरह चुपचाप हेडमास्टर साहब के साथ चला गया। हम लोगों ने कहा, “बेचारा घबराएगा नहीं? जानते तो हो ही, कैसे मामा हैं।
हम सभी उसके मामा को देखने के लिए उतावले हो गये। मगर वहाँ जाकर देखा तो पाया कि एक दुबले-पतले काले रंग के छोकरे जैसे महानुभाव चश्मा चढ़ाए गोवर गणेश की तरह बैठे। हुए थे। यज्ञदास ने उन्हें जाकर प्रणाम किया। उस दिन सचमुच हमें बेहद गुस्सा आया था। ऐसा धोखा! हमें एक झूठमूठ के मामा के बारे में बताता रहा? उस दिन हम लोगों की खिंचाई से यज्ञदास के आँसू निकल आये। उसने मान लिया कि वह फ़ोटो वास्तव में किसी पुरबिया पहलवान की थी।
उस दिन उसने गाड़ी में बैठे जिस व्यक्ति को अपना मामा बताया था, उसे वह खुद भी नहीं जानता था। उसके बाद से किसी अजीबोगरीब चीज़ की चर्चा होते ही हमारे मुँह से निकल जाता, क्या यज्ञदास के मामा की तरह?
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