बीरबल की खिचड़ी | Birbal Ki Khichadi Story In Hindi

Birbal Ki Khichadi Story In Hindi – पौष के महीने में शाम के समय कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। पक्षियों के झुंड के झुंड अपने-अपने बसेरों की ओर उड़ते जा रहे थे। अकबर बादशाह छत पर खड़े-खड़े यह सब देख रहे थे। आज उनके साथ वीरवल भी मौजूद थे। यमुना की लहरों को छूते हुए हवाओं के ठंडे झोंके आते और दोनों को ठंडा करते हुए निकल जाते।

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Birbal Ki Khichadi Story In Hindi

दोनों ही नगर की जनता के हालात के बारे में चर्चा कर रहे थे। दिन डूबते ही लोग गलियों और सड़कों पर दिखाई नहीं देते थे। पाला पड़ रहा था। नगर की जनता और पशु-पक्षियों का बुरा हाल था। अरहर और मटर की फसलों पर पाला पड़ गया था। इन गंभीर बातों के बाद वे साधारण बातों पर उतर आए। यमुना नदी की ओर देखते हुए अकबर बोले, “बीरबल, ऐसा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति गले तक डूबा हुआ पूरी रात यमुना के पानी में वीरवन की बात सुनकर अकबर आश्चर्यचकित रह गए। अकबर ने कहा, “तो ठीक है।

कल एक ऐसा व्यक्ति तलाश कर लाओ “पूरे दिन चीरवत यमुना नदी के आस-पास के धीवरों से मिलते रहे। आखिर में बीरबल ने एक ऐसा व्यक्ति तलाश लिया। शाम होते ही बीरबल उस व्यक्ति को लेकर अकबर के पास पहुंचे। अकबर के सामने ही वह व्यक्ति गरदन तक यमुना के पानी में उतर गया। कुछ देर अकबर देखते रहे। उसके बाद अकबर ने कई कारिंद तैनात कर दिए कि इस आदमी की देखभाल करते रहें।

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सुबह होते ही बादशाह छत पर आए देखा तो यह आदमी उसी तरह पानी में खड़ा हुआ था। अकबर ने कारिंदा से कहा कि अब इसे बाहर आने को कहो और दरबार में लेकर आओ। कारिंदा उस धीवर को लेकर अकबर के दरबार में पहुंचा। अकबर ने उस धीवर से पूछा कि पूरी रात तुम पानी में कैसे खड़े रहे? अकबर की बात सुनकर धीवर ने कहा, “जहांपनाह में तो रात भर ईश्वर का नाम लेता रहा। कभी-कभी यमुना के उस पार जलते हुए दीपक को देखता रहा।

इससे मन लगा रहा इतनी बात सुनते ही अकबर बोल पड़े, “अच्छा तो पूरी रात पानी में खड़े रहने का यह राज है। दीये की लौ से गर्मी लेते रहे और मैं यही सोचता रहा कि इतनी तेज सदी में कोई पूरी रात कैसे खड़ा रह सकता है? अकबर की बात सुनकर वीरवत को अजीब सा लगा। बीरबल कुछ कहना चाह रहे थे, लेकिन बोले नहीं।

अपमान का घूंट पीकर रह गए। धीवर बेचारा सोच रहा था कि इनाम मिलेगा, लेकिन उसे झिड़की सुनने को मिली। शाम को बीरबल पीवर के पास गए। उसे कुछ रुपए अपने पास से दिए और कहा कि चिंता मत करना। तुम्हें इनाम अवश्य मिलेगा। बीरबल रात भर धीवर की समस्या को लेकर उपेड़-बुन में लगे रहे।

इस घटना से वीरबल का भी अपमान हुआ था और उसके प्रति तो बिल्कुल नाइंसाफी हुई थी। नींद के आते-आते बीरबल के दिमाग में इस समस्या का तरीका आ गया था। दूसरे दिन जब दौरवत समय से दरबार में नहीं पहुंचे, तो बादशाह ने हरकारा भेजा और वीरवत को आने के लिए कहलवा भेजा। जब बीरबल के पास हरकारा पहुंचा, तब ये खिचड़ी पका रहे थे। बीरबल ने हरकारे से कहा कि बादशाह से कहना कि बीरबल खिचड़ी बना रहे हैं। एक घंटे में पहुंचते हैं।

हरकारे ने जाकर बीरबल की कही बात को बादशाह से कह दिया। दो घंटे बीत गए, लेकिन धीरबल दरवार नहीं पहुंचे। अकबर ने फिर हरकारा भेजा। राजय वीरबल के पास पहुंचा, तो बीरबल ने हरकारे से कार कि बादशाह से कहना कि खिचड़ी अभी पक्की नहीं है। एक घंटे बाद आ रहे हैं। दो घंटे और बीत गए तो तीसरी बार अकबर ने फिर हरकारा भेजा।

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तीसरी बार भी हरकारा, वही उत्तर लेकर लोटा कि खिचड़ी पकने में अभी एक घंटा और लगेगा। दरबार का समय खत्म होने को आया, लेकिन बीरबल दरबार में नहीं पहुंचे। दरबार खत्म करने के बाद अकबर बादशाह सीधे बीरबल के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं। वीर ने एक लंबा वांस जमीन में गाड़ रखा था और उसके ऊपर, चोटी पर एक हांडी लटका रखी थी।

बीरबल ने बांस के नीचे जमीन पर चूल्हा जता रखा था। यह देखकर अकबर बादशाह आश्चर्यचकित रह गए। बीरबल बैठे चूल्हा जला रहे थे। कब वीरवत के पास आकर अकबर खड़े हो गए, बीरबल को मालूम नहीं पड़ा जब अकबर ने आवाज दी, तो वीरवल ने देखा और खड़े हो गए। बीरबल बोले, “जहांपनाह आप आपने क्यों कष्ट किया? खिचड़ी पकाने में लगा हुआ हैं। एक ही नहीं रही है। में सुबह से बैठा-बैठा पका रहा हूँ।

“अकबर मुस्कराते हुए बोले, “तुम्हारी खिचड़ी कभी नहीं एक पाएगी। “क्यों नहीं जहांपनाह, इसकी गर्मी हांड़ी तक अवश्य पहुंच रही है। आप ही सोचिए, उस धीवर को यमुना पार जलते दीये से गर्मी मिलती रही और उसी की गरमाहट से वह पूरी रात पानी में खड़ा रहा। “अकबर ने बीरबल को गले लगा लिया और कहा, “उस धीवर को कल दरबार में हाजिर होने के लिए बुलावा भेज देना। आप भी समय पर आ जाना यहीं खिचड़ी मत पकाते रहना।” इतना कहकर अकबर बादशाह चले गए।

दरबार लगा हुआ था। बीरबल धीवर को लेकर समय पर पहुंच गए। अकबर बादशाह ने अपनी मूल को सुधारते हुए धीवर को सम्मानित किया और सम्मान के साथ ही अच्छा इनाम भी दिया। दरबारियों ने आपस में कानाफूसी करते हुए आपस में कहा- “यह सब ‘बीरबल की खिचड़ी’ का कमाल है।

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