डाकू का भ्रम | Daku Ka Bhram Story In Hindi

Daku Ka Bhram Story In Hindi- हारान बाबू शाम के समय स्टेशन से घर लौट रहे थे। उनका घर स्टेशन से आधा मील दूर था। शाम करीब-करीब ढल चुकी थी। हारान बाबू की चाल तेज हो गई। उनके एक हाथ में बैग था और दूसरे हाथ में छाता । चलते हुए अचानक उन्हें लगा कि कोई उनके पीछे आ रहा है। उन्होंने तिरछी नज़रों से देखा, वाकई कोई और भी उन्हीं की तरह तेज़ क़दमों से उनके पीछे चला आ रहा था।

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हारन बाबू को लगा, जैसे वह उनका पीछा कर रहा है। हारान बाबू घबरा गए कि कहीं वह व्यक्ति चोर-डाकू तो नहीं है। इस सुनसान मैदान को पार करते हुए उन्हें अकेला पाकर कहीं वह उन्हें दो-चार लाठी ही न जमा दे हारान बाबू की बॉस जैसी दुबली-पतली टाँगे काँपने लगीं। जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो वह किसी तरह लड़खड़ाते हुए दौड़ने लगे। उन्हें दौड़ते देखकर उनके पीछेवाला आदमी भी दौड़ने लगा।

Daku Ka Bhram Story In Hindi

यह देखकर हारान बाबू ने सोचा सुनसान मैदान को इस तरह अकेले पार करना ठीक नहीं, बल्कि बड़ी सड़क से वैद्य टोला होकर, घूमकर जाना ही ठीक है। इस तरह कुछ ज़्यादा चलना जरूर पड़ेगा पर जान तो बचेगी। वह झट से दाहिनी तरफ़ की एक गली में घुसकर बख़्शी बाबू की बाड़ लाँघकर दौड़ते हुए मुख्य सड़क पर जा पहुँचे ।

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बाप रे! उनके पीछेवाला आदमी वाक़ई बदमाश था। वह भी उन्हीं की तरह बाड़ लाँघकर उल्टे रास्ते से मुख्य सड़क पर आ पहुँचा। हारान बाबू ने अपने छाते की सख्ती से पकड़ लिया। उन्होंने सोचा, अब भाग्य में जो लिखा है, देखा जाएगा। उस बदमाश के नजदीक आते ही इसी छाते से वह उसकी पिटाई कर देंगे। हारान बाबू को याद आया कि वह बचपन में व्यायाम किया करते थे।

उन्होंने एक बार अपनी बाँहों की मांसपेशियाँ फुलाकर देख ली कि वे अभी सख्त होती हैं या नहीं। अब वह काली बाड़ी के पास पहुँच चुके थे। मन्दिर के नजदीक पहुँचते ही हारान बाबू अचानक वहाँ उगी झाड़ियों के बीच से होकर जितना तेज दौड़ सकते थे, दौड़ने लगे। पैरों की आवाज़ क़रीब आते सुनकर उन्हें महसूस हुआ कि वह आदमी उनसे भी तेज दौड़ रहा था।

अब तो उन्हें उसके डाकू होने के बारे में कोई सन्देह नहीं रहा। हारान बाबू का दिल बड़ी तेजी से धड़कने लगा। उनके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं। अचानक उन्हें सामनेवाले घाट पर कुछ लोग बैठे बातें करते हुए नज़र आए। उन्हें देखकर हारान बाबू के मन में साहस लौट आया।

उनके कुछ और पास पहुँचकर अपने को और सुरक्षित समझकर उन्होंने पलटकर अपना छाता तानते हुए सीना फुलाकर जोर से कहा, “अब मेरे पास आ, मैं तुझसे निपटता हूँ। क्या मुझे तेरी हरकतों का पता नहीं? अपना भला समझता है तो…। मगर जब वह आदमी पास आया तो उसे देखकर उनका जोश ठण्डा पड़ गया। यह भी हारान बाबू जैसा ही दुबला-पतला निरीह आदमी था। वह डाकू तो लगता ही नहीं था।

हारान बाबू ने अपनी आवाज धीमी करके उसे डाँटा, “जरा बता तो, तू मेरा पीछा क्यों कर रहा है? हारान बाबू को नाराज़ देखकर वह आदमी घबरा गया था। उसने किसी तरह अपना गला झाड़कर कहा, “स्टेशन के बाबू ने ही मुझसे कहा था कि आप बलराम बाबू के घर की बगल में रहते हैं। मुझे वहीं जाना है। मैंने सोचा कि मैं आपके पीछे-पीछे चलता रहूँ तो बलराम बाबू के यहाँ पहुँच जाऊँगा ।

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मगर बाबूजी, एक बात मेरी समझ में नहीं आई। आप क्या रोज इसी तरह उल्टे-सीधे रास्ते से कूदते-ते-दौड़ते हुए अपने घर जाते हैं? हारान बाबू की समझ में नहीं आया कि वह क्या कहें। सच बात कहने में उन्हें शर्म आ रही थी। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। उसे साथ लेकर वह घर की ओर चल पड़े।

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